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भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक-जीव स्वरूप
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प्रकार हे स्कन्दक ! द्रव्य लोक अन्त सहित है, क्षेत्रलोक अन्त सहित है, काललोक अन्त रहित है और भावलोक अन्त रहित है । इस प्रकार लोक अंत सहित भी है और अंत रहित भी है।
विवेचन-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय, इन पांच काय रूप लोक है । वह द्रव्य की अपेक्षा एक है और सान्त (अन्तसहित) है । क्षेत्र की अपेक्षा इस लोक की लम्बाई (आयाम) और चौड़ाई (विष्कम्भ) एवं मोटाई और परिधि असंख्यात कोडाकोडी योजन है । काल की अपेक्षा-लोक भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा । वह अचल होने से 'ध्रुव' है, वह एक स्वरूप वाला होने से 'नियत' है. सर्वदा होने के कारण वह 'शाश्वत' है, अविनाशी होने के कारण वह 'अक्षत' है। उसके प्रदेश अव्यय होने के कारण 'अव्यय' है । वह अनन्त पर्यायों वाला होने के कारण 'अवस्थित' है । तात्पर्य यह है कि वह नित्य है । भाव से लोक अनन्त वर्ण पर्याय रूप है, अनन्त गन्ध, रस, स्पर्श पर्याय रूप है, अनन्त गुरुलघु-स्थूल स्कन्ध (आठ स्पर्शवाले शरीरादि) पर्यायरूप है और अनन्त अगुरुलघु-धर्मास्तिकायादि अरूपी तथा चौफरसी सूक्ष्म स्कन्धादि पर्यायरूप है।
जे वि य ते खंदया ! जाव-सअंते जीवे अणंते जीवे तस्स वि य णं अयम?-एवं खलु जाव-१ दवओ णं एगे जीवे सअंते, २ खेत्तओ णं जीवे असंखेजपएसिए, असंखेजपएसोगाढे, अस्थि पुण से अंते, ३ कालओ णं जीवे न कयाइ न आसी, जाव-निच्चे, नथि पुण से अंते । ४ भावओ णं जीवे अणंता णाणपजवा, अणंता दसणपजवा, अणंता चारितपजवा, अणंता अगरुलहुयपजवा, नत्थि पुण से अंते, सेत्तं दव्वओ जीवे सअंते, खेत्तओ जीवे सअंते, कालओ जीवे अणंते, भावओ जीवे अणंते । . . ___ भावार्थ-हे स्कन्दक ! जीव के विषय में तुम्हारे मन में यह विकल्प हुआ
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