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भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक-बालमरण के भेद
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वा, तस्स वि य णं अयमद्वे-एवं खलु खंदया ! मए दुविहे मरणे पण्णते । तं जहाः-बालमरणे य, पंडियमरणे य । से किं तं बालमरणे ? बालमरणे दुवालसविहे पण्णत्ते । तं जहाः-बलयमरणे, वसट्टमरणे, अन्तोसल्लमरणे, तभवमरणे, गिरिपडणे, तरुपडणे, जलप्पवेसे, जलणप्पवेसे, विसभक्खणे, सत्थोवाडणे, वेहाणसे, गिद्धपढे। इच्चेतेणं खंदया ! दुवालसविहेणं बालमरणेणं मरमाणे जीवे अणंतेहिं नेरइयभवग्गहणेहिं अप्पाणं संजोएइ, तिरिय-मणुय-देव० अणाइयं च णं अणवदग्गं, चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टइ, सेत्तं मरमाणे वड्ढइ, सेत्तं बालमरणे ।
विशेष शब्दों के अर्थ-वड्ढइ-बढ़ता है, हायइ-घटता है, बलयमरणे-बलन्मरण, बसट्टमरणे-वशार्तमरण-तड़पते हुए मरना-विषयवश करना, अंतोसल्लमरणे-हृदय में शल्य लेकर मरना, तम्भवमरणे-मरकर उसी भव में उत्पन्न होना, गिरिपडणे-पर्वत से गिरकर मरना, तरुपडणे-वृक्ष गिरकर मरना, जलप्पवेसे-पानी में डूबकर मरना, जलणप्पवेसेअग्नि में जलकर मरना, विसभक्खणे-विष खाकर मरना, सत्योवाडणे-शस्त्राघात से मरना, वेहाणसे-फांसी पर लटक कर मरना, गिद्धपढ़े-गिद्धादि के खाने से मरना, संजोएइ-सम्बन्धजोड़ता है, अणाइय-अनादि, अणवदग्गं-अंत रहित, अणुपरियट्टइ-भ्रमण करता है।
भावार्थ-हे स्कन्दक ! तुम्हें इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ था कि कौनसे मरण से मरता हुआ जीव, संसार को बढ़ाता है और कौनसे मरण से मरता हुआ जीव, संसार को घटाता है। . हे स्कन्दक! इसका उत्तर यह है कि-मरण दो प्रकार का बतलाया गया, है-१ बालमरण और २ पण्डितमरण । इनमें से बालमरण बारह प्रकार का कहा गया है-१ बलन्मरण, २ वसट्टमरण-वशात मरण, ३ अन्तःशल्य मरण,
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