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भगवती सूत्र - श. २ उ. १ मृतादी अनगार
भिलाषी प्राणी को विश्वस्त नहीं हो जाना चाहिए अर्थात् उसे प्रमादी नहीं बन जाना चाहिए। संसार चक्र में परिभ्रमण करता हुआ मुनि का जीव, भिन्न भिन्न विवक्षा से 'प्राण' भूत जीव और संत्त्व आदि शब्दों से कहा जाता है । जब इनमें से एक एक धर्म की विवक्षा की जाती है तब एक समय में एक शब्द द्वारा कहा जाता है और जब एक साथ सब धर्मों की विवक्षा की जाती है तब एक साथ 'प्राण, भूत, जीव, सत्त्व' आदि सभी शब्दों द्वारा कहा जाता है ।
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१६ प्रश्न - मडाई णं भंते ! नियंठे निरुद्धभवे, निरुद्धभवपवंचे, जाव-निट्टियट्टकरणिजे णो पुणरवि इत्थत्थं हव्वमागच्छ्छ ?
१६ उत्तर - हंता गोयमा ! मडाई णं नियंठे जाव णो पुणरवि इत्थत्थं हव्वमागच्छ्छ ।
१७ प्रश्न - से णं भंते! किं वत्तव्वं सिया ?
१७ उत्तर - गोयमा ! 'सिद्धे' त्ति वत्तव्वं सिया, 'बुद्धे' त्ति वत्तव्वं सिया, 'मुत्ते' त्ति वत्तव्यं सिया, 'पारगए' त्ति वत्तव्वं सिया, 'परंपरगए' त्ति वत्तव्वं सिया; 'सिद्धे बुद्धे मुत्ते, परिनिव्वुडे, अंतकंडे, सव्वदुक्खप्पहीणे' त्ति वत्तव्वं सिया ।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंद, नर्मस, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
विशेष शब्दों के अर्थ-- सिद्धे – सिद्ध, बुद्धे – सर्वज्ञ, मुत्तेमुक्त छुटा हुआ, पारगए - संसार पारंगत, परंपरगए - अनुक्रम से अर्थात् एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा इस तरह अनुक्रम से संसार के पार पहुँचे हुए। परिनिब्बुडे - संताप से रहित होकर, निर्वाण प्राप्त, अंतकडे - दुःखों का अन्त करने वाला ।
भावार्थ - १६ प्रश्न - हे भगवन् ! जिसने संसार का निरोध किया है, जिसने
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