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भगवती सूत्र
जीव सामान्य और एकेन्द्रिय जीवों के लिए यह कथन किया गया है कि - यदि किसी प्रकार का व्याघात न हो, तो वे छहों दिशाओं से श्वासोच्छ्वास के पुद्गलों को ग्रहण करते हैं और यदि व्याघात हो, तो कदाचित् तीन दिशाओं से, कदाचित् चार दिशाओं से और कदाचित् पाँच दिशाओं से श्वासोच्छ्वास के पुद्गलों को ग्रहण करते हैं । इसका कारण यह है कि एकेन्द्रिय जीव, लोक के अन्त भाग में भी होते हैं, वहाँ उन्हें अलोक द्वारा व्याघात होता है। शेष जीव नैरयिक आदि सनाड़ी के अन्दर ही होते है । इसलिए वे छहों दिशाओं से श्वासोच्छ्वास के पुद्गलों को ग्रहण कर सकते हैं । उनको व्याघात नहीं होता है ।
- शं. २ उ. १ वायुकाय का श्वासोच्छ्वास
वायुकाय का श्वासोच्छ्वास
८ प्रश्न - वाउयाए णं भंते ! वाउयाए चेव आणमंति वा, पाणमंति वा, ऊससंति वा, नीससंति वा ?
८ उत्तर - हंता, गोयमा ! वाउयाए णं जाव-नीससंति वा । ९ प्रश्न - वाउयाए णं भंते! वाउयाए चेव अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दात्ता, उद्दाहत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पञ्चायाह ?
९ उत्तर - हंता, गोयमा ! जाव - पच्चायाइ ?
निक्खमइ ।
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१० प्रश्न – से भंते ! किं पुट्ठे उद्दार, अपुट्ठे उद्दाइ ? १० उत्तर - गोयमा ! पुट्ठे उद्दाह, णो अपुट्ठे उद्दाह । ११ प्रश्न - से भंते ! किं ससरीरी निक्खमइ, असरीरी निक्ख
मह ?
११ उत्तर - गोयमा ! सिय ससरीरी निक्खमह, सिय असरीरी
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