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भगवती सूत्र-श. १ उ. ९ लेश्यादि का गुरुत्व लघुत्व
२८९ उत्तर-गोयमा ! णो गरुया, णो लहया, गरुयलहुया वि, अगरुयलहुया वि।
२९० प्रश्न-से केणटेणं ?
२९० उत्तर-गोयमा ! दव्वलेस्सं पडुच्च तइयपएणं, भावलेस्सं पडुच्च चउत्थपएणं, एवं जाव-सुक्कलेस्सा।
विशेष शब्दों के अर्थ-ततियपएणं-तृतीय पद = तीसरे भेद। - २८९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या गुरु हैं ? या लघु है ? या गुरुलघु है ?या अगुरु लघु है ?
२८९ उत्तर-हे गौतम ! कृष्णलेश्या गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरुलघु भी है और अगुरुलघु है ?
२९० प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
२९. उत्तर-हे गौतम ! द्रव्य लेश्या की अपेक्षा तीसरे पद से जानना चाहिए अर्थात् द्रव्य लेश्या की अपेक्षा से कृष्णलेश्या गुरुलघु है । भावलेश्या की अपेक्षा से चौथे पद से जानना चाहिए अर्थात् भावलेश्या की अपेक्षा कृष्णलेश्या अगुरुलघु है । इसी प्रकार शुक्ललेश्या तक जानना चाहिए।
विवेचन-“लिश्यते श्लिश्यते आत्मा कर्मणा सह अनया सा लेश्या" अर्थात् जिससे आत्मा कर्मों से लिप्त होता है उसको लेश्या कहते हैं । लेश्या के मूल भेद दो हैं-द्रव्य लेश्या और भाव लेश्या । द्रव्य लेश्या गुरुलघु है और भाव लेश्या अगुरुलघु है।
२९१- दिट्ठी-दंसण-णाण-ऽण्णाण-सन्नाओ चउत्थपएणं णेयवाओ । हेट्ठिल्ला चत्तारि सरीरा णेयव्वा तइएणं पएणं । कम्मया चउत्थएणं पएणं । मणजोगो, वहजोगो, चउत्थएणं पएणं, कायजोगो तहएणं पएणं । सागारोवओगो, अणागारोवओगो चउत्थपएणं ।
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