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भगवती सूत्र - श. १ उ. ९ स्थविरों से कालास्यवेषि के प्रश्नोत्तर
थेरा सामाइयस्स अहं ण याणंति: थेरा पञ्चक्खाणं ण याणंति, थेरा पञ्चक्खाणस्स अहं ण याणंति, थेरा संजमं ण याणंति, थेरा संजमस्स अहं ण याणंति थेरा संवरं ण याणंति, थेरा संवरस्स अहं ण याणंति; थेरा विवेगं ण याणंति, थेरा विवेगस्स अट्ठ ण याणंति; थेरा विउस्सग्गंण याणंति, थेरा विउस्सग्गस्स अहं ण याणंति । तए णं ते थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अणगारं एवं वयासी:जाणामो णं अजो ! सामाइयं, जाणामो णं अज्जो ! सामाइयस्स अट्टं, जाव - जाणामो णं अज्जो ! विउस्सग्गस्स अहं ।
विशेष शब्दों के अर्थ – पासावचिचज्जे – पाश्र्वापत्य = पार्श्वनाथ भगवान् के सन्तानिये विउस्सग्गस्स - व्युत्सर्ग= काया के प्रति अनासक्ति, याणंति - जानते ।
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भावार्थ - २९६ प्रश्न - उस काल उस समय में पाश्र्वापत्य अर्थात् भगवान् पार्श्वनाथ के सन्तानिये - शिष्यानुशिष्य कालास्यवेषिपुत्र नामक अनगार जहां स्थविर भगवान् थे वहां गये । वहाँ जाकर उन स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार कहा कि - हे स्थविरों ! आप सामायिक को नहीं जानते हैं, सामायिक के अर्थ को नहीं जानते हैं। आप प्रत्याख्यान को नहीं जानते हैं, आप प्रत्याख्यान के अर्थ को नहीं जानते हैं । आप संयम को नहीं जानते हैं, आप संयम के अर्थ को नहीं जानते हैं । आप संवर को नहीं जानते हैं, संवर के अर्थ को नहीं जानते हैं । आप विवेक को नहीं जानते हैं, विवेक के अर्थ को नहीं जानते हैं । आप व्युत्सर्ग को नहीं जानते हैं और व्युत्सर्ग के अर्थ को नहीं जानते हैं ।
तब स्थविर भगवन्तों ने कालास्यवेषिपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा • कि - हे आर्य ! हम सामायिक को जानते हैं, सामायिक के अर्थ को जानते हैं यावत् हम व्युत्सर्ग को जानते हैं और व्युत्सर्ग के अर्थ को जानते हैं ।
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