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भगवती सूत्र-शे. १ उ. ९ आधाकर्म भोगने का फल
अविरति को।
___ भावार्थ-३०१ प्रश्न-'भगवन् !' ऐसा कह कर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार बोले-हे भगवन् ! सेठ, दरिद्र, कृपण और क्षत्रिय (राजा) क्या इन सब के अप्रत्याख्यान क्रिया समान होती है।
३०१ उत्तर-हे गौतम ! हां, सेठ यावत् क्षत्रिय इन सब के अप्रत्याख्यान क्रिया समान होती है। . ३०२ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
३०२ उत्तर-हे गौतम ! अविरति की अपेक्षा ऐसा कहा गया है किसेठ, दरिद्र, कृपण और क्षत्रिय इन सब के अप्रत्याख्यान क्रिया समान होती है।
विवेचन-एक समय गौतम स्वामी के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि एक तरफ सेठ है, दूसरी तरफ एक दरिद्र है, एक तरफ एक कृपण है, दूसरी तरफ एक राजा है, क्या इन सब को अप्रत्याख्यान की क्रिया एक सरीखी लगती है, या कुछ न्यूनाधिकता है ? इस शंका से प्रेरित होकर उन्होंने भगवान से प्रश्न किया। इसके उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! अविरति की अपेक्षा से अप्रत्याख्यान की क्रिया इन सब को बराबर लगती है। क्योंकि जब तक इच्छा नहीं छूटी, तब तक अव्रत की क्रिया लगती ही है। .
आधाकर्म भोगने का फल
३०३ प्रश्न-आहाकम्मं णं भुंजमाणे समणे निग्गंथे किं बंधइ, किं पकरेइ, किं चिणाइ, किं उवचिणाइ ? ___ ३०३ उत्तर-गोयमा ! आहाकम्मं णं भुंजमाणे आउयवजाओ सत्त कम्मप्पगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ धणियबंधणबद्धाओ पकरेइ, जाव-अणुपरियट्टइ ।
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