________________
३६४
भगवती सूत्र-श. १ उ. १० परमाणु के विभाग और भाषा अभाषा
माणकृत, एगयओ-एकओर, दुहा-दो प्रकार से, तिहा-तीन प्रकार से, तम्हा-इसलिए, करणओ-करने से।
_____भावार्थ-३०८-हे भगवन् ! अन्य तीथिक इस प्रकार कहते हैं यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि-जो चल रहा है वह चला नहीं कहलाता और यावत् जो निर्जरा रहा है वह निर्जीर्ण नहीं कहलाता है।
. ३०९-दो परमाणु पुद्गल एक साथ नहीं चिपकते हैं। दो परमाणु पुदगल एक साथ क्यों नहीं चिपकते हैं ? इसका कारण यह है कि दो परमाणु पुद्गलों में चिकनापन नहीं है। इसलिए दो परमाणु पुद्गल. एक साथ नहीं चिपकते हैं।
३१०-तीन परमाणु पुद्गल एक दूसरे के साथ चिपकते हैं । तीन परमाणु पुद्गल आपस में क्यों चिपकते हैं ? इसका कारण यह है कि तीन परमाणु पुद्गलों में चिकनापन होता है। इसलिए तीन परमाणु पुद्गल आपस में चिपकते हैं । यदि तीन परमाणु पुद्गलों के विभाग किये जाय, तो दो भाग भी हो सकते हैं। और तीन भाग भी हो सकते हैं। यदि तीन परमाण पुद्गलों के दो भाग किये जाय, तो एक तरफ डेढ़ परमाणु होता है और दूसरी तरफ भी डेढ़ परमाणु हो जाता है । यदि तीन परमाणु पुद्गलों के तीन भाग किये जाय तो एक एक करके तीन परमाणु अलग अलग हो जाते हैं। इसी तरह यावत् चार परमाणु पुद्गलों के विषय में समझना चाहिए। .
___ ३११-पांच परमाणु पुद्गल आपस में चिपक जाते हैं और वे दुःखरूप (कर्म रूप) में परिणत होते हैं। वह दुःख (कर्म) शाश्वत है और सदा भलीभांति उपचय को प्राप्त होता है और अपचय को प्राप्त होता है।
३१२-बोलने से पहले जो भाषा (भाषा के पुद्गल)है, वह भाषा है। बोलते समय की भाषा, अभाषा है और बोलने का समय व्यतीत हो जाने के बाद की भाषा, भाषा है।
३१३-यह जो बोलने से पहले की भाषा, भाषा है और बोलते समय की भाषा, अभाषा है तथा बोलने के समय के बाद की भाषा, भाषा है, सो क्या
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org