________________
३६८
भगवती
Jain Education International
सूत्र - श. १ उ. १० भाषा अभाषा
३२० - पांच परमाणु पुद्गल परस्पर में चिपट जाते हैं और परस्पर चिपट कर एक स्कन्ध रूप बन जाते हैं। वह स्कन्ध अशाश्वत है और हमेशा उपचय तथा अपच पाता है अर्थात् वह बढ़ता भी है और घटता भी है ।
विवेचन - गौतमस्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि - हे गौतम! अन्यतीर्थिकों का उपर्युक्त कथन मिथ्या है, क्योंकि एक परमाणु में भी स्नेहकाय ( चिकना - पन) होता है । तीन परमाणुओं का मिलना और बिखरना तो वे लोग भी मानते हैं। यदि परमाणुओं में स्नेहकाय न होता, तो वे कंसे जुड़ते ? और जब जुड़ते हैं, तो उनमें स्नेहकाय • मानना ही होगा। दो परमाणु पुद्गलों में यदि स्नेहकाय न हो, तो तीसरे में कहाँ से आजाता है ? उन्होंने तो डेढ़ परमाणु पुद्गल में भी स्नेहकाय माना है, फिर दो परमाणु पुद्गलों में स्नेहकाय मानने में बाधा ही क्या है ? इसके सिवाय उन्होंने तीन परमाणु पुद्गलों के दो विभाग- डेढ़ डेढ़ परमाणुओं के माने हैं, सो परमाणु आधा कैसे हो सकता है ? क्योंकि परमाणु तो उसी को कहते हैं कि जिसके फिर दो विभाग न हो सकें । परमाणु छोटा होता है, फिर भी उसमें जुड़ने की शक्ति होती है। यहां स्नेहकाय ( चिकनापन ) का प्रश्न होने . से चिकने परमाणुओं का कथन किया है, किन्तु रुक्ष परमाणु पुद्गल भी जुड़ते हैं ।
गौतम स्वामी पूछते हैं कि हे भगवन् ! अन्यतीर्थिक कहते हैं कि पांच परमाणु आपस में जुड़कर कर्म के स्कन्ध बन जाते हैं, किन्तु वे किसी के बनाने से नहीं बनते हैं, वे स्वभाव से ही स्कन्ध बन जाते हैं, वे पाँच परमाणु मिल कर दुःखरूप में परिणत हो जाते हैं, वह दुःख भी शाश्वत है और उपचय तथा अपचय को प्राप्त होते हैं । हे भगवन् !. क्या उनका यह कहना सत्य ?
भगवान् ने फरमाया कि - हे गौतम! अन्यतीर्थिकों का यह कथन मिथ्या है, क्योंकि दुःख रूप में परिणत होने वाला स्कन्ध अनन्त प्रदेशी होता है । दुःख स्वतः स्वभाव से ही उत्पन्न नहीं होता, किन्तु वह उत्पन्न करने से होता है, बिना उत्पन्न किये नहीं होता है और कर्म अशाश्वत ही होते हैं । किन्तु पांच परमाणु जुड़ने से तो स्कन्ध होता है और वह भी अशाश्वत है ।
३२१ - “पुव्विं भासा अभासा, भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासम पविइव कंतं च णं भासिया भासा अभासा । "
३२२ - " जा सा पुव्विं भासा अभासा । भासिज्जमाणी भासा
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org