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भगवती सूत्र - श. १ उ. ९ स्थविरों से कालास्यवेषि के प्रश्नोतर
से कालासवेसिपुते अणगारे थेरे भगवंते बंदर, नमंसह, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीः - इच्छामि णं भंते! तुब्भं अतिए चाउज्जामाओ. धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिकमणं धम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं ।
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विशेष शब्दों के अर्थ-संबुद्धे-समझे, पयार्ण-पदों को, अभिगमेणं-विस्तार पूर्वक नहीं जानने से, अविद्वाणं - नहीं देखने से, अस्सुयाणं - नहीं सुनने से, अण्णाणयाए नहीं जाननें से, अविण्णायाणं - विशेष नहीं जानने से, अव्बोगडाणं - अव्याकृत- अस्पष्ट, अवोच्छिणाअनिर्णीत होने से, अणिज्जूढाणं- उद्धृत नहीं किये हुए, उवधारियाणं - अवधारित, पत्तइएप्रीति करना, रोइए - रुचि करना, पत्तियामि - प्रीति प्रतीति करता हूं, रोए मि- रुचि करता हूं, चाउज्जामाओ- चार यामरूप, उवसंपज्जित्तार्ण प्राप्त करके, स्वीकार करके, अहासुहंयथासुख- जिसमें सुख हो वैसा, पडिबंध - व्याघात-विलंब |
३०० - स्थविर भगवन्तों का उत्तर सुन कर वे कालास्यवेषिपुत्र अनगार बोध को प्राप्त हुए और तब उन्होंने स्थविर भगवन्तों को वन्दना नमस्कार किया । फिर कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने इस प्रकार कहा कि-हे भगवन् ! इन पूर्वोक्त पदों को न जानने से पहले सुने हुए नं होने से, बोध न होने से, अभिगम (ज्ञान) न होने से, दृष्ट न होने से, विचार न होने से, सुने हुए न होने से, विशेष रूप से न जानने से, कहे हुए न होने से, अनिर्णीत होने से, उद्धत न होने से और ये पद धारण किये हुए न होने से, इस अर्थ में श्रद्धा नहीं थी, प्रतीति नहीं थी, रुचि नहीं थी, किन्तु हे भगवन् ! अब इनको जान लेने से, सुन लेने से, बीध होने से, अभिगम होने से, दृष्ट होने से, चिन्तित होने से, श्रुत होने से, विशेष जान लेने से, कथित होने से, निर्णीत होने से, उद्धृत होने से और इन पदों का अवधारण करने से, इस अर्थ में में श्रद्धा करता हूँ, प्रतीति करता हूँ, ofer करता हूँ । हे भगवन् ! आप जो यह कहते हैं वह यथार्थ है, वह इसी प्रकार है ।
तब उन स्थविर भगवन्तों ने कालास्यवेषिपुत्र अनगार से इस प्रकार
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