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भगवती सूत्र - - श. १ उ. ९ स्थविरों से कालास्यवेषि के प्रश्नोत्तर ३४७
लोभे किमठ्ठे अजो ! गरहह ?
२९८ उत्तर-कालासवेसियपुत्त ! संजमट्टयाए ।
२९९ प्रश्न - से भंते ! किं गरहा संजमे ? अगरहा संजमे ? २९९ उत्तर - कालासवेसियपुत्त ! गरहा संजमे, णो अगरहा संजमे । गरहा वि य णं सव्वं दोसं पविणेs, सव्वं बालियं परिणा । एवं खुणे आया संजमे उवहिए भवइ, एवं खु णे आया संजमे उवचिए भवइ, एवं खु णे आया संजमे उवट्टिए भवइ ।
विशेष शब्दों के अर्थ - अज्जो - हे आर्य, आया- आत्मा, अवहट्ठे-छोड़कर, गरहानिंदा, पविणे - नष्ट करना, बालियं-बालपन = मिथ्यात्व, अविरति, परिण्णाए - ज्ञानपूर्वक जानकर, उवट्ठिए- उपस्थित = स्थापित |
२९७ प्रश्नं-तब कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार कहा कि हे आयौं ! यदि आप सामायिक को और सामायिक के अर्थ को यावत् व्युत्सर्ग और व्युत्सर्ग के अर्थ को जानते हैं, तो बतलाइये कि सामायिक क्या है ? सामायिक का अर्थ क्या है ? यावत् व्युत्सर्ग क्या है और व्युत्सर्ग का अर्थ क्या है ?.
२९७ उत्तर-तब स्थविर भगवन्तों ने कालात्यवेषिपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा कि - हे आर्य ! हमारी आत्मा सामायिक हैं, हमारी आत्मा सामायिक का अर्थ हैं यावत् हमारी आत्मा व्युत्सर्ग है और हमारी आत्मा ही व्युत्सर्ग का अर्थ है ।
२९८ प्रश्न - तब कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने उन स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार कहा कि हे आर्यो ! यदि आत्मा ही सामायिक है, आत्मा ही सामाfe का अर्थ है और इसी प्रकार यावत् आत्मा ही व्युत्सर्ग है एवं आत्मा ही व्युत्सर्ग का अर्थ है, तो आप क्रोध, मान, माया और लोभ का त्याग करके क्रोध
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