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भगवती सूत्र-श. १ उ. ९ गुरुत्व लघुत्व
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२८८ प्रश्न-से केणटेणं ?
२८८ उत्तर-गोयमा ! गरुयलहुयदव्वाइं पडुच्च णो गरुए, णो लहुए, गरुयलटुंए, णो अगरुयलहुए। अगरुयलहुयदव्वाइं पडुच्च णो गरुए, णो लहुए, णो गरुयलहुए, अगरुयलहुए । समया, कम्माणि य चउत्थपएणं ।
___ विशेष शब्दों के अर्थ-पोग्गलत्यिकाए-पुद्गलास्तिकाय = वह अजीव तत्त्व, जो वर्णादि सहित है।
___ २८७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या पुद्गलास्तिकाय गुरु है ?या लघु है ?या गुरुलघु है ? या अगुरुलघु है ?
२८७ उत्तर-हे गौतम ! पुद्गलास्तिकाय गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किंतु . गुरुलघु भी है और अगुरुलघु भी है।
२८८ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? . २८८ उत्तर-हे गौतम ! गुरुलघु द्रव्यों की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय गुरु नहीं है, लघु नहीं है, अगुरुलघु नहीं है, किन्तु गुरुलघु है । अगुरुलघु द्रव्यों की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय गुरु नहीं है, लघु नहीं है, गुरुलघु नहीं है, किन्तु अगुरुलघु है । समयों को और कर्मों को चौथे पद से जानना चाहिए अर्थात् समय और कर्म अगुरुलघु हैं। .. विवेचन-पुद्गलास्तिकाय न तो सर्वथा गुरु (भारी)है और न सर्वथा लघु (हलका) है । यह गुरुलघु है और अगुरुलघु है। जो पुद्गल आठ स्पर्श वाले स्थूल हैं, वे गुरुलघु (भारी और हलके) है और जो चार स्पर्श वाले सूक्ष्म पुद्गल हैं वे अगुरुलघु (न तो भारी और न हलके ) हैं।
• २८९ प्रश्न-कण्हलेस्सा .णं भंते ! किं गरुया, जाव-अगरुयलहुया ? ..
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