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भगवती सूत्र - श. १ उ. ९ नैरयिक का गुरुत्व लघुत्व
तेणट्टेणं, एवं जाव-वेमाणिया । णवरं - णाणत्तं जाणियव्वं सरीरेहिं धम्मत्थिकाए, जाव - जीवत्थिकाए चउत्थपरणं ।
विशेष शब्दों के अर्थ – गरुयलहुया - भारी और हलका, अगरुयलहुया - न तो भारी और न हलका, चउत्थपरणं - चतुर्थपद - चौथे भेद |
भावार्थ - २८५ प्रश्न – क्या नारकी जीव गुरु हैं ? या लघु हैं ? या गुरुलघु हैं ? या अगुरुलघु हैं ?
२८५ उत्तर - हे गौतम! गुरु नहीं हैं, लघु नहीं हैं, किन्तु गुरुलघु हैं 'अगुरुलघु भी हैं ।
और
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२८६ प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
२८६ उत्तर - हे गौतम! नारकी जीव, वैक्रिय और तेजस् शरीर की • अपेक्षा गुरु नहीं हैं, लघु नहीं हैं, अगुरुलघु भी नहीं हैं, किन्तु गुरुलघु हैं। नारकी जीव, जीव और कर्म की अपेक्षा गुरु नहीं हैं, लघु नहीं हैं, गुरुलघु नहीं हैं, किंतु अगुरुलघु हैं। इसलिए हे गौतम! पूर्वोक्त कथन किया गया है। इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिए, किन्तु विशेष यह है कि शरीरों में भिन्नता है । धर्मास्तिकाय यावत् जीवास्तिकाय चौथे पद से जानना चाहिए अर्थात् इन्हें अगुरुलघु समझना चाहिए ।
विवेचन - अब नैरयिक जीवों का गुरुत्व लघुत्व की अपेक्षा विचार किया जाता है । इनके चार पद हैं- १ गुरुत्व ( भारीपन ) २ लघुत्व ( हलकापन ) ३ गुरुलघुत्व ( भारी और हलकापन) और ४ अगुरुलघुत्व (न भारी और न हलकापन ) नैरयिक जीवों के तीन शरीर होते हैं - वैक्रिय, तेजस् और कार्मण । इनमें से वैक्रिय और तेजस् शरीर की अपेक्षा कि जीव, गुरुलघु हैं, क्योंकि ये दोनों शरीर वैक्रिय और तेजस् वर्गणा से बने हुए हैं और ये दोनों वर्गणाएँ गुरुलघु हैं । जैसा कि कहा है
गुरुलघु हैं ।
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'ओरालियवेड व्विय- आहारगतेय गुरुलहुबच्व' ति ।
अर्थात् - औदारिक वर्गणा, वैक्रिय वर्गणा, आहारक वर्गणा और तैजस वर्गणा, ये
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