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भगवती सूत्र--श. १ उ. ९ पुद्गलास्तिकाय का गुरुत्व लघुत्व
जीव और कार्मण शरीर की अपेक्षा नैरयिक जीव अगुरुलघु है, क्योंकि जीव अरूपी है, इसलिए अगुरुलघु है । कार्मण-शरीर कार्मण-वर्गणा का बना हुआ है और कार्मण-वर्गणा चौफरसी है, इसलिए कार्मण-शरीर भी अगुरुलघु है । जैसा कि कहा है
'कम्मगमण भासाई एयाइं अगरुलहआई' अर्थात्-कार्मण वर्गणा, मनोवर्गणा और भाषावर्गणा (शब्द) ये अगुरुलघु हैं।
असुरकुमार आदि का वर्णन नैरयिक जीवों की तरह कहना चाहिए । पृथ्वीकाय अप्काय, तेउकाय और वनस्पतिकाय इनके तीन शरीर होते हैं-औदारिक, तेजस् और कार्मण । वायुकाय के चार शरीर होते हैं-औदारिक, वैक्रिय, तेजस् और कार्मण । विकलेन्द्रिय (बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय) के औदारिक, तेजस और कार्मण, ये तीन शरीर होते हैं । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों के औदारिक, वैक्रिय, तेजस् और कार्मण शरीर होते हैं । इनमें वैक्रिय शरीर किसी किसी को प्राप्त हो सकता है, सबको सदा प्राप्त नहीं रहता । पञ्चेन्द्रिय मनुष्य के तीन शरीर तो होते ही हैं, वैक्रिय और आहारक शरीर भी हो सकता है। मनुष्यों को आहारक शरीर भी प्राप्त हो सकता है और लब्धि के निमित्त से वैक्रिय शरीर भी हो सकता है । देवों में नारकी जीवों के समान वैक्रिय, तेजस् और कार्मण ये तीन शरीर होते हैं । इस प्रकार शरीरों में विभिन्नता होने पर भी गुरुलघु के प्रश्न में सब जीव दो ही विभागों में समा जाते हैं। क्योंकि सिर्फ गुरु या सिर्फ लघु तो कोई वस्तु है ही नहीं। कार्मण शरीर को छोड़ कर शेष चार शरीरों की अपेक्षा चौबीस दण्डकों के सभी जीव गरुलघु हैं और जीव तथा कार्मण शरीर की अपेक्षा सभी जीव अगुरुलघु हैं।
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय ये चारों पदार्थ अगुरुलघु हैं । ये चारों अरूपी होने से इनमें गुरुता या लघुता नहीं है। जीव द्रव्य भी यद्यपि स्वरूपतः अरूपी है, किन्तु शरीर सहित जीव रूपी है और इसी कारण से उसे गुरुलघु कहा गया है । सिद्ध जीव अशरीरी होने से अरूपी हैं, अतएव अगुरुलघु है । .
२८७ प्रश्न-पोग्गलत्थिकाए णं भंते ! किं गरुए, लहुए, गरुयलहुए, अगरुयलहुए ?
२८७ उत्तर-गोयमा ! णो गरुए, णो लहुए, गरुयलहुए वि, अगरुयलहुए वि।
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