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भगवती सूत्र-श. १ उ. ९ आकाशादि का गुरुत्व लघुत्व
अगरुयलहुए । एवं सत्तमे घणवाए, सत्तमे घणोदही, सत्तमा पुढवी, उवासंतराई सव्वाई जहा सत्तमे उवासंतरे, जहा तणुवाए, (गरुयलहुए) एवं ओवासवाय, घणउदहि, पुढवी, दीवा य, सायरा, वासा ।
विशेष शब्दों के अर्थ-उवासंतरे-अवकाशान्तर, तणुवाए-तनुवात, घणवाए-घनवात, घणोबही-घनोदधि, पुढबी-पृथ्वी, दीवा-द्वीप, सायरा-सागर, वासा-वर्ष = क्षेत्र ।
भावार्थ-२८३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सातवां अवकाशान्तर गुरु है ? या लघु है ? या गुरुलघु है ? या अगुरुलघु है ? .. २८३ उत्तर-हे गौतम ! वह गुरु नहीं है, लघु नहीं है, गुरुलघु नहीं है, किन्तु अगुरुलघु है।
२८४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सातवां तनुवात गुरु है ? या लघु है ? या गुरुलघु है ? अथवा अगुरुलघु है ? · .
२८४ उत्तर-हे गौतम ! वह गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरुलघु है, अगुरुलघु नहीं है । इसी प्रकार सातवां धनवात, सातवां घनोदधि, और सातवीं पृथ्वी के विषय में भी कहना चाहिए । जैसा सातवें अवकाशान्तर के विषय में कहा है वैसा ही सब अवकाशान्तरों के विषय में जानना चाहिए। तनुवात के विषय में जैसा कहा है उसी प्रकार सभी घनवात, घनोदधि, पृथ्वी, . दीप, समुद्र और क्षेत्रों के विषय में भी जानना चाहिए।
- विवेचन-यह लोक चौदह राजु परिमाण है। यह पुरुषाकार है । नीचे की ओर सात नरक पृथ्वियाँ हैं । पहली पृथ्वी (नरक) के नीचे घनोदधि है, उसके नीचे धनवात हैधनवात के नीचे तनुवात है और तनुवात के नीचे आकाश है । इसी क्रम से सातों नरकों के नीचे है । ये आकाश ही सात अवकाशान्तर कहलाते हैं । ये अवकाशान्तर अगुरुलघु हैं, गुरु नहीं हैं, लघु नहीं हैं और गुरुलघु भी नहीं हैं । तनुवात गुरुलघु हैं । तनुवात के समान ही धनवात, घनोदंधि, पृथ्वी, द्वीप, सागर और क्षेत्र भी गुरुलघु है । तात्पर्य यह है कि अवकाशान्तर में चौथा भंग (अगुरुलघु) पाया जाता है और शेष सब में तनुवात की तरह . तीसरा भंग पाया जाता है । क्योंकि ये हलके भारी रूप दोनों अवस्था में हैं। .
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