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टिका गरुत्व लघत्व भगवती सूत्र-श. १ उ. ९ जीवादि का गुरुत्व लघुत्व
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भावार्थ-२८० प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, किस प्रकार गुरुत्व-भारीपन को . प्राप्त होते है ?
२८० उत्तर-हे गौतम ! प्राणातिपात से, मषावाद से, अवत्तावान से, मैथुन से, परिग्रह से, क्रोध से, मान से, माया से, लोभ से, प्रेम (राग) से, द्वेष से, कलह से, अभ्याल्यान से, पैशुन्य ((चुगली) से, अरतिरति से, परपरिवाद से, मायामषावाद से और मिथ्यावर्शन शल्य से, इन अठारह पापों का सेवन करने से जीव शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं।
२८१ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, किस प्रकार लघुत्व को प्राप्त होते हैं ?
२८१ उत्तर-हे गौतम ! प्राणातिपात के त्याग से यावत् मिण्यावर्शनशल्प के त्याग से जीव शीघ्र लघुत्व को प्राप्त होते हैं।
२८२-इस प्रकार जीव प्राणातिपात मावि पापों का सेवन करने से संसार को बढ़ाते हैं, लम्बे काल का करते हैं, और बारबार भव भ्रमण करते हैं तथा प्राणातिपात भावि पापों का त्याग करने से जीव संसार को घटाते हैं, अल्पकालीन करते हैं और संसार लोप जाते हैं। इनमें से चार प्रशस्त हैं और चार भप्रशस्त हैं।
विवचन-आठ उद्देशक के अन्त में वीर्य का कपन किया है। वीर्य से जीव गुतल भारि को प्राप्त करते है तथा प्रथम शतक के भारम्भ में जो संग्रह गाया भाई उसमें 'गए' शान दिया है। इसलिए इस नब में उद्देशक मैं जीवों के 'गुरुत्व' भाषि का विचार किया जाता।।
गुरुत्व अर्थात् भारीपन । नीच गति में जाने योग्य अशुभ कर्मों का उपार्जन करला 'गुरुत्व' है । प्राणातिपात मावि महारह पापों के सेवन से जीष गुरुत्व को प्राप्त होते है।
भडारह पाप इस प्रकार !-प्राणातिपात-प्रभाषपूर्वक प्राणों का भतिपात करमा भषात मात्मा (शरीर) से उन्हें अलग कर देना 'प्राणातिपात'-(हिंसा) कहलाता है। २ मृषावादझूठ बोलना । ३ अदत्तादान-चोरी करना । ४ मैथुन-कुशील सेवन करना । ५ परिग्रह-धन धान्यादि बाह्य वस्तुओं पर मूर्छा-ममत्व रखना। ६ क्रोध-कोप। ७ मान-अहंकार । ८ माया-कपटाई, कुटिलता । ९ लोभ-लालच, तृष्पा । १० राग-माया और लोभ-जिसमें
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