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भगवती सूत्र--ग. १ उ. ८ मृगघातकादि को लगने वाली क्रिया
२६५ उत्तर-हे गौतम ! जबतक वह पुरुष जाल को धारण करता है और मृगों को बांधता नहीं है तथा मृगों को मारता नहीं है, तबतक वह पुरुष-कायिकी, आधिकरणिको और प्राद्वेषिकी, इन तीन क्रियाओं से स्पृष्ट . है अर्थात् तीन क्रिया वाला होता है । जबतक वह जाल को धारण किये हुए है और मृगों को बांधता है, किन्तु मारता नहीं, तबतक वह पुरुष-कायिकी, . आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी और पारितापनिकी, इन चार क्रियाओं से स्पष्ट है। जब वह पुरुष जाल को धारण किये हुए है, मृगों को बांधता है और मारता है,.. तब वह-कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिको इन पांच क्रियाओं से स्पृष्ट है अर्थात् पांच क्रिया वाला है। इस कारण हे गौतम ! वह पुरुष कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला है।
विवेचन-यहाँ क्रिया के पाँच भेद बताये हैं(१) कायिकी-काया द्वारा होने वाला सावध व्यापार-कायिकी क्रिया है।
(२) आधिकरणिकी-हिंसा के साधन-शस्त्रादि जुटाना-आधिकरणिको क्रिया कहलाती है।
(३) प्राद्वेषिकी-हिंसा प्रद्वेष अर्थात् किसी पर दुष्ट भाव होने से लगने वाली क्रिया-प्राद्वेषिकी क्रिया कहलाती है। .
(४) पारितापनिकी-किसी जीव को पीड़ा पहुँचाना-पारितापनिकी क्रिया कहलाती है।
(५) प्राणातिपातिकी-जिस जीन को मारने का संकल्प किया था उसे मार डालना-प्राणातिपातिकी क्रिया कहलाती है।
गौतम स्वामी ने पूछा कि हे भगवन् ! मृग मारकर अपनी आजीविका चलाने वाला कोई शिकारी मृग मारने के संकल्प से जंगल में गया। उसने वहाँ मृग को फंसाने के लिए जाल फैलाया। तो हे भगवन् ! उसको कितनी क्रियाएँ लगीं?
भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ? केवल जाल फैलाने पर उसे तीन क्रियाएँ लगी । मृग के फंसने पर चार क्रियाएँ लगी और मृग को मारडालने पर पांच क्रियाएँ लगीं।
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