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भगवती सूत्र - श. १ उ. ८ घातक को लगने वाली क्रिया
कति किरिए ?
२७२ उत्तर - गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे तं पुरिसं सत्तीए समभिधंसेइ, सयपाणिणा वा, से असिणा सीसं छिंद, तावं च णं से पुरिसे काइयाए, अहिगरणियाए, जाव - पाणाइवायकिरियाए - पंचहिं किरियाहिं पुट्टे । आसण्णवहरण य अणवकंखणवत्तीए पं पुरिसवेरेणं पुढे ।
विशेष शब्दों के अर्थ- सत्तीए - शक्ति से भाले से, सयपाणिणा- अपने हाथ से, असिणा - तलवार से ।
२७२ प्रश्न - हे भगवन् ! कोई पुरुष, किसी पुरुष को बरछी से मारे. अथवा अपने हाथ से तलवार द्वारा उस पुरुष का मस्तक काट डाले, तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है ?
२७२ उत्तर - हे गौतम! जब वह पुरुष, उसे बरछी द्वारा मारता है। अथवा अपने हाथ से तलवार द्वारा उस पुरुष का मस्तक काटता है, तब वह पुरुष कायिकी आधिकरणिकी यावत् प्राणातिपातिकी, इन पांचों क्रियाओं से स्पष्ट होता है और आसन्नवधक एवं दूसरे के प्राणों की परवाह न करने वाला वह पुरुष, पुरुष वैर से स्पृष्ट होता हैं ।
विवेचन - बरछी से मारने वाले एवं तलवार से मस्तक काटने वाले पुरुष को पांच क्रियाएँ लगती हैं और वह पुरुष वैर से स्पृष्ट होता है और वह आसन्नवधक होता है. अर्थात् उस वैर के कारण वह उसी पुरुष द्वारा अथवा दूसरे द्वारा उसी जन्म में अथवा जन्मान्तर में मारा जाता है । जैसा कि कहा है
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“वह-मारण-अब्भक्खाणदाण-परधण-विलोवणाइं । 'सब्वजहण्णो उदयो, दसगुणिओ एक्कसि कयाणं" ॥
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