________________
भगवती सूत्र-श. १ उ. ८ हार जीत का कारण
३२५
__अर्थात्-वध, मारण, अभ्याख्यान (कूडा आल देना, झूठा दोषारोपण करना) और परधन चुराना, एक बार किये हुए इन अपकृत्यों का कम से कम दस गुणा उदय होता है।
हार जीत का कारण
... २७३ प्रश्न-दो भंते ! पुरिसा सरिसया, सरित्तया, सरिव्वया, सरिसभंड-मत्तोवगरणा अण्णमण्णेणं सद्धि संगाम संगामेंति, तत्थ णं एगे पुरिसे पराइणइ, एगे पुरिसे पराइजह से कहमेयं भंते ! एवं ?
२७३ उत्तर-गोयमा ! एवं वुचइ-सवीरिए पराइणइ, अवीरिए पराइजइ ।
२७४ प्रश्न-से केणटेणं जाव-पराइजइ ?
२७४ उत्तर-गोयमा ! जस्स णं वीरियवज्झाई कम्माई णो वद्धाई, णो पुट्ठाई, जाव-णो अभिसमण्णागयाइं, णो उदिण्णाई, उपसंताई भवंति; से णं पराइणइ । जस्स णं वीरियवज्झाई कम्माई बद्धाई, जाव-उदिण्णाई, णो उवसंताई भवंति; से णं पुरिसे पराइजइ, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुबह-सविरिए पराइणइ, अविरिए पराइजह ।' - विशेष शब्दों के अर्थ-सरिसया-एक सरीखें, सरितया-एक समान त्वचा चमड़ी वाले, सरिम्बया-एक समान उम्र वाले, सरिसभंडमत्तोवगरणा-एक समान उपकरणशस्त्र वाले, अन्नमण्णेनं-एक दूसरे के साथ-परस्पर, संगाम-संग्राम, पराइमइ-जीतता है, पराइना-हारता है, सीरिए-सवीर्य, अतीरिए-अवीर्य ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org