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भगवती सूत्र - श. १ उ. ५ पृथ्वीकाय आदि का वर्णन .
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द्रव्य का आहार करते हैं। सेसं तहेव-शेष सब वर्णन पहले के समान ही समझना चाहिए । णाणत्तं-सिर्फ भेद यह है--
हे भगवन् ! पृथ्वीकाय के जीव, कइभाग-कितने भाग का, आहारेंति-आहार करते हैं, और कहभागं-कितने भाग का, फासाइंति-स्पर्श करते हैं-आस्वादन करते हैं ?
गोयमा-हे गौतम ! असंखिज्जमागं-असंख्यातवें भाग का, आहारेंति-आहार करते हैं, और अणंतभागं-अनन्तवें भाग का, फासाइंति-स्पर्श करते हैं-आस्वादन करते हैं ।
हे भगवन् ! तेसि-उनके द्वारा आहार किये हुए, पोग्गला-पुद्गल, कीसत्ताएकिस रूप में, भुज्जो भुज्जो-बारबार, परिणमंति-परिणत होते हैं ?
गोयमा-हे गौतम ! फासिदिय वेमायत्ताए-स्पर्शेन्द्रिय के रूप में साता असाता रूप विविध प्रकार से, भुज्जो भुज्जो-बारबार, परिणमंति-परिणत होते हैं । सेसं जहा
रइयाणं-शेष सब वर्णन नारकियों के समान समझना चाहिए, जाव-यावत् णो अचलियं कम्मं णिज्जरंति-अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते हैं । एवं-इसी प्रकार, जाव वणस्सइकाइयाणं-अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के जीवों के विषय में समझना चाहिए, गवरं-सिर्फ विशेषता यह है कि, ठिई वण्णेयव्वा जा जस्स-जिसकी जितनी स्थिति हो उसकी उतनी कह देनी चाहिए। उस्सासो वेमायाए-इन सब का उच्छ्वास • भी विमात्रा-विविध प्रकार से जानना चाहिए अर्थात् स्थिति के अनुसार नियत नहीं है।
.. भावार्थ-२७ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकाय के जीवों की स्थिति कितनी
२७ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की है।
२८ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकाय के जीव कितने काल में श्वासोच्छ्वास लेते हैं ?
२८ उत्तर-हे गौतम ! विमात्रा से श्वासोच्छ्वास लेते हैं अर्थात् इनके श्वासोच्छ्वास का समय स्थिति के अनुसार नियत नहीं है।
२९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या पृथ्वीकाय के जीव आहार के अभिलाषी
२९ उत्तर-हाँ गौतम ! आहार के अभिलाषी हैं।
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