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भगवती सूत्र-श. १ उ. ४ पुद्गल का नित्यत्व
भोगना । 'अहानिगरण' का अर्थ है-'यथा निकरण' अर्थात् विपरिणाम के कारणभूत नियत देश काल आदि कारणों की मर्यादा का उल्लंघन न करके अर्थात् देश काल आदि की मर्यादा के अनुसार जो कर्म जिस रूप में भगवान् ने देखा होगा, वह उसी रूप में परिणत होगा।
चारों गतियों के जीवों ने जो कर्म बांधे हैं, उनको भोगे बिना मोक्ष नहीं हो सकता । 'जीव उनको किस प्रकार भोगेगा' यह विशेषतः सर्वज्ञ भगवन्तों ने देखा है।
पुद्गल का नित्यत्व
१५६ प्रश्न-एस णं भंते ! पोग्गले अतीतं अणंत, सासयं समयं भुवीति वत्तव्वं सिया ?
१५६ उत्तर-हंता, गोयमा ! एस णं पोग्गले अतीतं अणंतं, सासयं समयं भुवीति वत्तव्वं सिया।
१५७ प्रश्न-एस णं अंते ! पोग्गले पडुप्पण्णं, सासयं समयं भवतीति वत्तव्वं सिया ?
१५७ उत्तर-हंता, गोयमा ! तं चेव उच्चारैयव्वं ।
१५८ प्रश्न-एस णं भंते ! पोग्गले अणागयं, अणंतं, सासयं समयं भविस्सतीति वत्तव्वं सिया ?
१५८ उत्तर-हंता, गोयमा ! तं चेव उच्चारेयव्वं । एवं खंधेण वि तिण्णि आलावगा । एवं जीवेण वि तिण्णि आलावगा भाणियवा।
विशेष शब्दों के अर्थ-अतीतं-भूतकालीन, पडुप्पण्णं-वर्तमानकालीन, अणागयंभविष्यकालीन ।
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