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भगवती सूत्र-श. १ उ. ६ आर्य रोह के प्रश्न
विशेष शब्दों के अर्थ-पगइमद्दए-प्रकृति से भद्र, पगइमउए-प्रकृति से कोमल, पगइविणीए-प्रकृति से विनीत, पगइउवसंते-प्रकृति से उपशान्त, अलीणे-गुरु महाराज के पास रहने वाला, अदूरसामंते-न अत्यन्त दूर और न अत्यन्त नजदीक, उड्ढं जाण-ऊर्ध्व जानु-दोनों घुटने खड़े रखकर, अहोसिरे-शिर को नीचे की तरफ झुकाये हुए, माणकोट्ठोवगए-ध्यान रूपी कोठे में प्राप्त, जायसड्ढे-जातश्रद्ध-जिनको श्रद्धा उत्पन्न हुई है, सासया भावा-शाख़त भाव, अंडए-अण्डा, कुक्कुडी-कुर्कटी = मुर्गी, उवासंतरे-अवकाशांतर वास-र्ष क्षेत्र, पज्जव-पर्याय, अद्धा-काल, संजोएयव्वं-जोड़ना चाहिए, सम्बद्धा-सर्वकाल ।
भावार्थ-उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के शिष्य रोह नामक अनगार थे। वे स्वभाव से भद्र, स्वभाव से कोमल, स्वभाव से विनीत, स्वभाव से शान्त, अल्प क्रोध, मान, माया और लोभ वाले अत्यन्त निरभिमानी, गुरु के समीप रहने वाले, किसी को कष्ट न पहुंचाने वाले और गुरुभक्त थे। वे रोह अनगार ऊर्ध्वजानु और नीचे की तरफ शिर मुकाये हुए ध्यान रूपी कोठे में प्रविष्ट, संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए, श्रमण भगवान महावीर स्वामी के समीप विचरते थे। तत्पश्चात् वे रोह अनगार जातश्रद्ध आदि होकर यावत् भगवान् की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले--
२१६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या पहले लोक है और पीछे अलोक है ? या पहले अलोक है और पीछे लोक है ?
२१६ उत्तर-हे रोह ! लोक और अलोक पहले भी है और पीछे भी है। ये दोनों ही शाश्वत भाव हैं। हे रोह ! इन दोनों में यह पहला और यह पिछला' ऐसा क्रम नहीं है। ., २१७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या पहले जीव और पीछे अजीव है ? या पहले अजीव और पीछे जीव है ?
२१७ उत्तर-हे रोह ! जैसा लोक और अलोक के विषय में कहा है वैसा ही जीव और अजीव के सम्बन्ध में समझना चाहिए। इसी प्रकार भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक, सिद्धि और असिद्धि तथा सिद्ध और संसारी के
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