________________
भगवती सूत्र - श. १ उ. ६ लोक स्थिति
मुंह बन्द कर दे । फिर उस मशक की बीच की गांठ खोल दे, तो हे गौतम ! वह भरा हुआ पानी उस हवा के ऊपर के भाग में रहेगा ?
२७८
हाँ, भगवन् ! रहेगा ।
इसलिए हे गौतम ! में कहता हूँ कि यावत् कर्मों ने जीवों का संग्रह कर रखा है।
अथवा - हे गौतम! कोई पुरुष उस चमडे की मशक को हवा से फुला कर अपनी कमर पर बांध ले । फिर वह पुरुष अथाह, दुस्तर और पुरुष परिमाणसे अधिक अर्थात् जिसमें पुरुष मस्तक तक डूब जाय, उससे भी अधिक पानी में प्रवेश करे, तो हे गौतम! क्या वह पुरुष पानी की ऊपरी सतह पर ही रहेगा ?
हाँ, भगवन् ! रहेगा ।
हे गौतम! इस प्रकार लोक की स्थिति आठ प्रकार की कही गई है, यावत् कर्मों ने जीवों को संगृहीत कर रखा है ।
विवेचन- - पहले लोकान्त आदि का वर्णन किया गया है, अतः अब लोक स्थिति का वर्णन किया जाता है ।
गौतम स्वामी ने पूछा कि हे भगवन् ! लोक स्थिति कितने प्रकार की है ? भगवान् ने फरमाया कि - हे गौतम ! आठ प्रकार की है। वह किस प्रकार हैं ? सो बतलाया जाता है - यद्यपि पृथ्वियां आठ हैं। सात पृथ्वियां नीचे हैं और ईषत्प्राग्भारा (सिद्ध शिला ). ऊपर है। वह सिर्फ आकाश के आधार पर रही हुई है। यहाँ अभी उसका विचार न करते हुए पहले सात पृथ्वियों का विचार किया गया है। इस पृथ्वी के नीचे सब से पहले आकाश है । वह आकाश किस पर ठहरा है ? यह प्रश्न नहीं हो सकता, क्योंकि आकाश स्वप्रतिष्ठित है - वह अपने आप पर ठहरा हुआ है। उसके लिए अन्य आधार की आवश्यकता नहीं होती । आकाश पर तनुवात ( पतली हवा ) है और तनुवात पर धनवात (गाढ़ हवा, ठोस हवा) है। घनवात पर घनोदधि ( जमा हुआ गाढ़ा पानी ) है । घनोदधि पर यह पृथ्वी ठहरी हुई है। पृथ्वी के आधार पर त्रस और स्थावर प्राणी रहे हुए हैं। अजीव, जीव पर प्रतिष्ठित हैं और जीव, कर्म प्रतिष्ठित हैं अर्थात् कर्म पर अवलम्बित हैं । अजीव
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org