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भगवती सूत्र - श. १ उ. ७ गर्भ विचार
२४५ उत्तर - हे गौतम ! आपस में एक दूसरे से मिला हुआ माता का आर्तव और पिता का वीर्य, जो कलुष है और किल्विष है, उसका जीव, गर्भ में उत्पन्न होते ही आहार करता है।
२४६ प्रश्न - हे भगवन् ! गर्भ में गया जीव क्या खाता है ?
२४६ उतर- हे गौतम! गर्भ में गया हुआ ( उत्पन्न हुआ) जीव, माता द्वारा खाये हुए अनेक प्रकार के रसविकारों के एक भाग के साथ माता का आर्तव खाता है ।
२४७ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या गर्भ में गये हुए जीव के मल, मूत्र, कफ, नाक का मैल, वमन और पित्त होता है ?
२४७ उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है, गर्भ में रहे हुए जीव के मल मूत्रादि नहीं होते हैं ।
ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ?
२४८ प्रश्न - हे भगवन् ! २४८ उत्तर - हे गौतम ! गर्भ में जाने पर जीव जो आहार खाता है, जिस आहार का चय करता है, उस आहार को श्रोत के रूप में यावत् स्पर्शनेन्द्रिय के रूप में, हड्डी के रूप में, मज्जा के रूप में, बाल के रूप में, दाढ़ी के रूप में, रोमों के रूप में और नखों के रूप में परिणत करता है । इसलिए हे गौतम ! गर्भ में गये हुए जीव के मल मूत्रादि नहीं होते हैं ।
२४९ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या गर्भ में उत्पन्न हुआ जीव, मुख द्वारा कंवलाहार (ग्रास रूप आहार ) करने में समर्थ है ?
२४९ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है - ऐसा नहीं हो सकता है। २५० प्रश्न - हे भगवन् ! यह किस कारण से ?
२५० उत्तर - हे गौतम! गर्भ में गया हुआ जीव, सर्व आत्म ( सारे शरीर) से आहार करता है, सर्व आत्म से परिणमाता है, सर्व आत्म से उच्छ्वास लेता है, सर्व आत्म से निःश्वास लेता है, बारबार आहार करता हैं, बार बार परिणमाता है, बार बार उच्छ्वास लेता हैं, बारबार निःश्वास लेता है, कदा
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