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भगवती सूत्र - श. १ उ. ६ लोक स्थिति
पुरिसे बस्थि आड़ोवे, आडोवित्ता कडीए बंधड़, बंधित्ता अत्थाहमतारमपोरसियंसि उदगंसि ओगाहेज्जा । मे णूणं गोयमा ! से पुरिसे तस्स आउयायस्स उवरिमतले चिट्ठह ? हंता, चिट्ठइ । एवं वा अट्ट विहा लोयट्टिई पण्णत्ता, जाव - जीवा कम्मसंगहिया ।
विशेष शब्दों के अर्थ – लोयट्टिई - लोक स्थिति, बस्थि - बस्ति चमड़े की मशक, आडोवे - वायु से फुलावे, उप्पि – ऊपरी भाग, मुयइ - छोड़ता है, वामेइ खोल देता है, कम्म संगहिया - कर्म संग्रहीत कर्मों ने जोवों का संग्रह कर रखा है, कडीए-कटि प्रदेश में कमर में, अत्थाहमतारमपोरसियसि - अथाह, दुस्तर और पुरुषपरिमाण से अधिक अर्थात् जिसमें पुरुष मस्तक तक डूब जाय, उससे भी अधिक, उदगंसि - पानी में ।
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भावार्थ - २२४ प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा कह कर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से यावत् इस प्रकार कहा - हे भगवन् ! लोक की स्थिति कितने प्रकार की कही गई है ?
२२४ उत्तर - हे गौतम ! लोक की स्थिति आठ प्रकार की कही गई है । वह इस प्रकार है- आकाश के आधार पर वायु टिका हुआ है। वायु के आधार पर उदधि है । उदधि के आधार पर पृथ्वी है । त्रस और स्थावर जीव पृथ्वी के आधार पर हैं । जीवों के आधार पर अजीव हैं, कर्म के आधार पर जीव (सकर्मक ) हैं । अजीवों को जीवों ने संग्रह कर रक्खा है और जीवों को कर्मों ने संग्रह कर रखा है ।
२२५ प्रश्न - हे भगवन् ! इस प्रकार कहने का क्या कारण है कि-लोक की स्थिति आठ प्रकार की है और यावत् जीवों को कर्मों ने संग्रह कर रखा है ? २२५ उत्तर - हे गौतम! जैसे कोई पुरुष चमडे की मशक को वायु से फुलावे । फिर उस मशक का मुख बांध दे। फिर मशक के बीच के भाग में गांठ बांधे। फिर मशक का मुंह खोल दे और उसके भीतर की हवा निकाल दे । फिर उस मशक के ऊपर खाली भाग में पानी भरे । फिर मशक का
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