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भगवती सूत्र-श. १ उ. ७ विग्रह गति
(१) उत्पन्न होता हुआ, (२) उत्पन्न होता हुआ आहार लेता है, (३) उद्वर्तता (निकलता) हुआ, (४) उद्वर्तता हुआ आहार लेता है (५) उत्पन्न हुआ, (६) उत्पन्न हुआ आहार लेता है, (७) उद्वता (निकला) हुआ, (८) उद्वर्ता निकला हुआ आहार लेता है।
देश और सर्व के द्वारा जीव के उत्पादादि के विषय में विचार करने से आठ दण्डक (आलापक, भंग, विकल्प) बने हैं, जो ऊपर बतलाये गये हैं । इसी तरह, अद्ध से अर्द्ध, अद्धं से सर्व, सर्व से अर्द्ध, और सर्व से सर्व, इन चार के द्वारा जीव के उत्पादादि के विषय में विचार करने पर पूर्वोक्त प्रकार से आठ दण्डक बनते हैं । इस प्रकार पूर्वोक्त आठ और ये आठ दण्डक मिल कर सब सोलह दण्डक होते हैं । . . शंका-पहले 'एक देश' सम्बन्धी प्रश्न किया जा चुका है, फिर यहाँ 'आधे' के संबध में प्रश्न क्यों किया गया ? 'देश' और 'आधे' (अर्द्ध) में क्या अन्तर है ?. . समाधान-'देश' तो आधा,पौन, पाव तथा इसी तरह इससे कम और ज्यादा आदि अनेक विभाग हो सकते हैं, किन्तु बीचोबीच से दो टुकड़े होना 'आधा' कहलाता है । इस प्रकार जीव के दो टुकड़े हो और एक टुकड़ा (आधा भाग) उत्पन्न हो और दूसरा टुकड़ा (आधा भाग) उत्पन्न न हो, यह नहीं हो सकता है । यही बतलाने के लिए ये प्रश्नोत्तर किये गये हैं कि आत्मा का देश (विभाग) या अर्द्ध विभाग उत्पन्न नहीं हो सकता है। जीव के प्रदेश उत्पत्ति स्थान पर इलिका गति से धीरे धीरे जाते हुए भी वे सब एक ही स्थान पर जायेंगे, दो तीन आदि विभागों से भिन्न-भिन्न स्थानों पर उत्पन्न नहीं होगा।
विग्रह गति
२३७ प्रभ-जीवे णं भंते ! किं विग्गहगइसमावण्णए, अविग्गहगइसमावण्णए ?
'२३७ उत्तर-गोयमा ! सिय विग्गहगइसमावष्णगे, सिय अविगहगइसमावण्णगे । एवं जाव-वेमाणिए। __२३८ प्रश्न-जीवा णं भंते ! किं विग्गहगइसमावष्णया, अवि.
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