________________
२९४
__भगवती सूत्र--श. १ उ. ७ विग्रहगति
वाला, महब्बले–महान् बल वाला, महायसे–महायशस्वी, महाणुभावे-महानुभाव, हिरिवत्तियं--लज्जा के कारण, दुगुंछावत्तियं--घृणा के कारण ।
भावार्य-२३७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव विग्रहगति समापन्न-विग्रह गति को प्राप्त है, या अविग्रह गति समापन-अविग्रह गति को प्राप्त है ?
२३७ उत्तर-हे गौतम! जीव कभी विग्रह गति को प्राप्त है और कभी अविग्रह गति को प्राप्त है । इसी प्रकार वैमानिक तक जानना चाहिए।
२३८ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या बहुत जीव विग्रह गति को प्राप्त हैं या अविग्रह गति को प्राप्त हैं ?
२३८ उत्तर-हे गौतम ! बहत जीव विग्रह गति को भी प्राप्त है और अविग्रह गति को भी प्राप्त हैं ? ... २३९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या नारकी जीव विग्रह गति को प्राप्त हैं या अविग्रह गति को भी प्राप्त हैं ?
२३९ उत्तर-हे गौतम ! (१) सभी अविग्रह गति को प्राप्त है । (२) अथवा बहुत से अविग्रह गति को प्राप्त हैं और कोई एक विग्रह गति को प्राप्त हैं। (३) अथवा बहुत से अविग्रह गति को प्राप्त हैं और बहुत से विग्रह गति को प्राप्त हैं। इसी प्रकार सब जगह तीन तीन भंग समझना चाहिए । सिर्फ जीव (सामान्य जीव) और एकेन्द्रिय में तीन भंग नहीं कहना चाहिए।
२४० प्रश्न-हे भगवन् ! महाऋद्धि वाला, महाद्युति वाला, महाबल वाला, महायशस्वी, महासामर्थ्य वाला, मरण काल में च्यवने वाला महेश चामक देव अथवा महासौख्य वाला देव लज्जा के कारण, घृणा के कारण, परीषह के कारण, कुछ समय तक आहार नहीं करता, फिर आहार करता है, और ग्रहण किया हुआ आहार परिणत भी होता है, अन्त में उस देव की वहां की आयु समाप्त हो जाती है। इसलिए वह देव जहाँ उत्पन्न होता है वहां की आयु भोगता है । तो हे भगवन् ! वह कौनसा आयु समझना चाहिए ? तिर्यञ्च का बायु समझना चाहिए या मनुष्य का आयु समझना चाहिए ? . २४० उत्तर-हे गौतम ! उस महाऋखि वाले देव का यावत् व्यवन के
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org