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भगवती सूत्र-श. १ उ. ६ लोक स्थिति
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को जीव ने संग्रह किया है और जोव को कर्म ने संग्रह किया है-ग्रहण किया हुआ है ।
इसके लिए उदाहरण देकर समझाया गया है कि-जैसे कोई मनुष्य हाथ में चमड़े की मशक लिये हुए है। उस मशक में वह वायु भरे और मशक का मुंह बांध दे । फिर बीच में एक रस्सी बांध कर मशक की हवा को दो भागों में बांट दे । इसके बाद मशक का मंह खोल कर ऊपर के हिस्से की हवा बाहर निकाल दे और उस खाली हिस्से में पानी भर दे और मशक का मुंह बन्द करके फिर बीच की रस्सी भी खोल दे। ऐसा करने पर एक ही मशक के नीचे के भाग में हवा होगी और कार, के भाग में पानी होगा । हे गौतम ! वह मशक का पानी मशक में भरी हुई हवा पर ठहरेगा या नहीं ? अवश्य ठहरेगा। हवा सूक्ष्म है और पानी उससे स्थूल है, फिर भी हे गौतम ! हवा के आधार पर पानी रहेगा या नहीं ? गौतम ने कहा-हाँ, भगवन् ! रहेगा।
हे गौतम ! इस न्याय से पहले कही हुई बात सहज ही समझ में आ सकती है कि हवा पर पानी रहता है। . अब भगवान् एक दृष्टान्त और देते हैं कि-है गौतम ! जैसे कोई एक पुरुष नदी पार करना चाहता है, परन्तु वह तैरना नहीं जानता । अतएव उसने एक मशक ली, उसमें हवा भरी और उसका मुंह बांध दिया। इसके बाद उसने मशक को कमर पर मजबूत बांध लिया और फिर वह मनुष्य अथाह जल में जावे । अब हे गौतम ! क्या वह पुरुष जल के ऊपरी भाग पर रहेगा?
गौतम स्वामी ने कहा-हे भगवन् ! वह जल के ऊपरी भाग पर रहेगा। .' हे गौतम ! वायु सूक्ष्म है, फिर भी वायु मनुष्य का भार वहन करती है, जिस प्रकार इसमें सन्देह को अवकाश नहीं हैं, उसी प्रकार हे गौतम ! आठ प्रकार की लोक स्थिति में भी सन्देह करने का कोई कारण नहीं है।
'स और स्थावर प्राणी पृथ्वी के आधार रहे हुए हैं'—यह प्रायिक वचन है, क्यों कि पृथ्वी के सिवाय दूसरी जगह भी आकाश, पर्वत, विमान आदि के आधार पर जीव रहे हुए हैं । शरीरादि अजीव रूप पुद्गल जीव के आधार पर रहे हुए हैं, क्योंकि वे जीव में स्थित है । जीव कर्म के आधार पर रहे हुए हैं, क्योंकि संसारी जीवों का आधार कर्म पुद्गलों का समुदाय है। किन्हीं आचार्यों का अभिप्राय है कि-जीव कर्म के आधार रहे हुए है अर्थात् जीव नारकादि भाव से रहे हुए हैं।
अजीवों को जीवों ने संग्रहित कर रखा है, क्योंकि मन और भाषा आदि के पुद्गलों
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