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भगवती सूत्र - श. १ उ. ६ स्नेहकाय
।
२८३ ।।
पवडइ ?
२२८ उत्तर-हंता, अत्थि । - २२९ प्रश्र-से भंते ! कि उड्ढे पवडइ, अहे पवडइ, तिरिए पवडइ।
२२९ उत्तर-गोयमा ! उड्ढे वि पवडइ, अहे वि पवडइ, तिरिए वि पवडइ। ___ २३० प्रश्न-जहा से बायरे आउयाए अण्णमण्णसमाउत्ते चिरं पि, दीहकालं चिट्ठइ तहा णं से वि ?
२३० उत्तर-णो इणटे समढे। से णं खिप्पं एव विसं आगच्छइ।
सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ।
॥ छटो उद्देसो सम्मत्तो॥ . · विशेष शब्दों के अर्थ–समियं-समित-परिमित, खिप्पं-शीघ्र, विद्धसं-नाश, सिहकाये-स्नेहकाय-एक प्रकार का जल।
भावार्थ-२२८ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सूक्ष्म स्नेहकाय सदा परिमित . पड़ता है ?
२२८ उत्तर--हां, गौतम ! पड़ता है। .... २२९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह सूक्ष्म स्नेहकाय ऊपर पड़ता है ? नीचे पड़ता है ? या तिरछा पड़ता है ?
२२९ उत्तर-हे गौतम ! वह ऊपर भी पड़ता है, नीचे भी पड़ता है और तिरछा भी पड़ता है।
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