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भगवती सूत्र---श. १ उ. ६ आय रोह के प्रश्न
इसी प्रकार मान और मृषा इत्यादि के संयोग से होनेवाले पापों का भी इसी में अन्तर्भाव समझना चाहिए । वेष बदल कर लोगों को ठगना 'मायामृषा' है, ऐसा भी इसका अर्थ किया जाता है । 'मिथ्यादर्शनशल्य' श्रद्धा का विपरीत होना 'मिथ्यादर्शन' है । जैसे शरीर में चुभा हुआ शल्य सदा कष्ट देता है, इसी प्रकार मिथ्यादर्शन भी आत्मा को दुःखी बनाये रखता है । इसीलिए 'मिथ्यादर्शन' को शल्य कहा है।
इस प्रकार गौतमस्वामी ने अठारह ही पापों के विषय में प्रश्न किये और भगवान् ने सब के उत्तर दिये अपने हृदय का समाधान करके गौतमस्वामी 'सेवं भंते ! सेवं भंते !!' कहकर और भगवान् को वन्दना नमस्कार करके तप संयम में लीनता युक्त विचरण करने
लगे।
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आर्य रोह के प्रश्न
। तेणं कालेणं, तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी रोहे णामं अणगारे पगंइभद्दए, पगइमउए, पगइविणीए, पगइउवसंते, पगइपयणुकोह-माण-माया-लोभे, मिउमद्दवसंपन्ने, अलीणे, भद्दए, विणीए समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणु, अहोसिरे, झाणकोट्ठोवगए संजमेणं, तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ। तए णं से रोहे अणगारे जायसड्ढे जाव-पज्जुवासमाणे एवं वयासीः- २१६ प्रश्न-पुब्वि भंते ! लोए, पच्छा अलोए ? पुचि अलोए, पच्छा लोए ? _____२१६ उत्तर-रोहा ! लोए य, अलोए य, पुब्धि पेते, पच्छा पेते-दो वि एए सासया भावा, अणाणुपुत्वी एसा रोहा ! .
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