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भगवती सूत्र - श. १ उ. ४ छद्मस्यादि की मुक्ति.
क्या बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में
भावार्थ - १५९ प्रश्न - हे भगवन् ! छद्मस्थ मनुष्य केवल संयम से, केवल संवर से, केवल ब्रह्मचर्यवास से और केवल प्रवचन - माता से सिद्ध हुआ है, बुद्ध हुआ है, यावत् समस्त दुःखों का नाश करने वाला हुआ है ?
यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
१५९ उत्तर - हे गौतम ! १६० प्रश्न - हे भगवन् !
किस कारण से आप ऐसा फरमाते हैं ? १६० उत्तर - हे गौतम! जो कोई जीव कर्मों का अन्त करने वाले और चरमशरीरी हुए हैं, वे सब उत्पन्न - ज्ञान दर्शनधारी, अरिहन्त, जिन और केवलीहोकर फिर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए हैं निर्वाण को प्राप्त हुए हैं, और उन्होंने समस्त दुःखों का नाश किया है, वैसे केवली ही मुक्त होते हैं और होंगे । इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा है कि यावत् समस्त दुःखों का अन्त किया। वर्तमान काल में भी इसी प्रकार जानना । विशेष यह है कि 'सिद्ध होते हैं' ऐसा कहना चाहिए। तथा भविष्य काल में भी इसी प्रकार जानना चाहिए, किन्तु विशेष यह है कि 'सिद्ध होंगे' ऐसा कहना चाहिए। जैसा छद्मस्थ के विषय में कहा है वैसा ही आधोवधिक और परमाधोवधिक के विषय में समझना चाहिए और उनके तीन आलापक कहना चाहिए ।
१६१ प्रश्न- हे भगवन् ! क्या बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में केवली मनुष्य ने यावत् समस्त दुःखों का अन्त किया ?
१६१ उत्तर - हाँ, गौतम ! वह सिद्ध हुआ यावत् उसने सब दुःखों का अन्त किया । यहाँ छद्मस्थ के समान तीन आलापक कहना चाहिए । विशेष यह है कि सिद्ध हुआ, सिद्ध होता हैं और सिद्ध होगा, इस प्रकार के तीन आलापक कहना चाहिए ।
१६२ प्रश्न - हे भगवन् ! बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में, वर्तमान शाश्वत काल में और अनन्त शाश्वत भविष्यत्काल में जिन अन्तकरों ने, चरम शरीर वालों ने सब दुःखों का नाश किया है, करते हैं और करेंगे, क्या वे सब
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