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भगवती सूत्र-श. १ उ. ६ क्रिया विचार
गोयमे समणं भगवं जाव-विहरइ ।
विशेष शब्दों के अर्थ-पाणाइवाए-प्राणातिपात, णिव्वाधाएणं-निर्व्याघात रूप से, पडुच्च-प्रतीत्य-अपेक्षा से, अत्तकडा-आत्मकृत, परफडा-परकृत, आणुपुषि-आनुपूर्वी अनुक्रम से, अणाणपुग्वि-अनानुपूर्वी अनुक्रम के बिना, वत्तव्वं सिया-कहना चाहिए, मुसावाएमृषावाद, अदिण्णादाणे-अदत्तादान, मेहुणे-मैथुन, मिच्छादसणसल्ले-मिथ्यादर्शन शल्य ।
.. भावार्थ-२०६ प्रश्न हे भगवन् ! क्या जीवों द्वारा प्राणातिपात क्रिया की जाती है ?
२०६ उत्तर-हाँ, गौतम ! की जाती है।
२०७ प्रश्न-हे भगवन् ! को जाने वाली वह क्रिया क्या स्पृष्ट है ? या अस्पृष्ट है ?
२०७ उत्तर-हे गौतम ! यावत् व्याघात न हो, तो छहों दिशाओं को और व्याघात हो तो कदाचित् तीन दिशाओं को, कदाचित् चार दिशाओं को और कदाचित् पांच दिशाओं को स्पर्श करती है।
२०८ प्रश्न--हे भगवन् ! की जाने वाली क्रिया क्या 'कृत' है ? या
२०८ उत्तर-हे गौतम ! वह क्रिया कृत है, अकृत नहीं।
२०९ प्रश्न-हे भगवन् ! को जाने वाली क्रिया क्या आत्मकृत है ? या परकृत है ? या तदुभयकृत है ?
२०९ उत्तर-हे गौतम ! वह आत्मकृत है, किन्तु परकृत या उभयकृत नहीं है।
• २१० प्रश्न-हे भगवन् ! जो क्रिया की जाती है क्या वह अनुक्रम पूर्वक कृत है या बिना अनुक्रम से कृत है ?
२१० उत्तर-हे गौतम ! वह अनुक्रमपूर्वक कृत है, किन्तु बिना अनुक्रमकृत नहीं है । जो क्रिया की जा रही है तथा की जायगी वह सब अनुक्रमपूर्वक कृत है, किन्तु बिना अनुक्रमपूर्वककृत नहीं है । ऐसा कहना चाहिए। - २११ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या नैरयिकों द्वारा प्राणातिपात क्रिया की
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