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भगवती सूत्र- श. १ उ. ५ नारकों के शरीर संस्थान
१७७ उत्तर-हे गौतम ! यहाँ सत्ताईस भंग कहना चाहिए। . . १७८ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में के प्रत्येक नरकावास में रहने वाले नरयिकों के शरीर किस संस्थान वाले हैं ? , १७८ उत्तर-हे गौतम ! उन नारकियों का शरीर दो प्रकार का कहा गया है । यथा-भंवधारणीय (जीवन पर्यन्त रहने वाला) और उत्तर वैक्रिय । उनमें जो भवधारणीय शरीर हैं, वे हुण्ड संस्थान वाले कहे गये हैं और जो शरीर उत्तर वैक्रिय रूप हैं, वे भी हुण्ड संस्थान वाले कहे गये है। '
१७९ प्रश्न-इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में के प्रत्येक नरकावास में बसने वाले हुण्ड संस्थान में वर्तमान नेरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं ? मानोपयुक्त हैं ? मायोपयुक्त हैं ? या लोमोपयुक्त हैं ? .
१७९ उत्तर-हे गौतम ! यहाँ सत्ताईस भंग कहना चाहिए।
विवेचन-जिसमें व्याप्त होकर आत्मा रहती है, अथवा जिसका क्षण क्षण में नाश होता रहता है, उसे 'शरीर' कहते हैं । नारकी जीवों के तीन शरीर होते हैं-वैक्रिय, तेजस और कार्मण । 'कार्मण शरीर' कर्मों का खजाना है। आहार को पचाकर खल भाग और रस भाग में विभक्त करना और रस को शरीर के अंगों में यथास्थान पहुंचाना 'तेजस शरीर' का काम हैं । 'वैक्रिय शरीर' के दो भेद हैं-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय ।
गौतम स्वामी ने पूछा कि-हे भगवन् ! वैक्रिय शरीर वाले नारकी जीव क्या क्रोधी हैं ? मानी है ? मायी हैं या लोभी हैं ?
भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! इस विषय में सत्ताईस भंग समझना चाहिए, क्योंकि ऐसा कोई समय नहीं होता जब वैक्रिय शरीर वाले जीव नरक में न हों । वक्रिय शरीर वाले जीव नरक में बहुत होते हैं, इसलिए सत्ताईस भंग ही प्राप्त होते हैं । इसी प्रकार तीनों शरीरों के सम्बन्ध में जानना चाहिए ।
यहाँ पर यह शंका हो सकती है कि वैक्रिय शरीर वालों के सत्ताईस भंग तो बतला दिये गये हैं । फिर मूल पाठ में 'एएणं गमेणं तिण्णि सरीरया भाणियव्वा' अर्थात् इसी प्रकार तीनों शरीरों के सम्बन्ध में जानना चाहिए । इसमें तीन शरीरों का कथन क्यों किया? क्योंकि शेष दो ही शरीर बचे हैं । इसलिए उन्हीं के सम्बन्ध में कहना चाहिए ?
इस शंका का समाधान यह है कि-यहाँ तैजस और कार्मण शरीर अलग नहीं लिये
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