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भगवती मूत्र-श. १ उ. ६ लोकान्त स्पर्शना आदि
फुसइ ?
२०२ उत्तर-हंता, गोयमा ! लोयंते अलोयंत फुसइ, अलोयंते वि लोयंतं फुसइ।
२०३ प्रश्न-तं भंते ! किं पुढे फुसइ, अपुढे फुसइ ? - २०३ उत्तर-जाव-नियमा छदिसि फुसइ ।
२०४ प्रश्न-दीवंते भंते ! सागरंतं फुसइ, सागरते वि दीवंतं फुसइ ?
२०४ उत्तर-हंता, जाव-नियमा छद्दिसिं फुसइ । . २०५ प्रश्न-एवं एएणं अभिलावेणं-उदयंते पोयतं फुसइ, छिद्दन्ते दूसतं, छायंते आयवंतं.....!
२०५ उत्तर-जाव-नियमा छदिसि फुसइ ।
विशेष शब्दों के अर्थ-फूसइ-स्पर्श करता है, लोयंते लोकान्त, अलोयंतेअलोकान्त, पुढें-स्पृष्ट, दीवंते-द्वीपान्त, अभिलावेणं-अभिलाप से, उदयंते-उदकांत, जल का अन्तिम भाग, पोयंते-पोतान्त-जहाज का अन्तिम भाग, छिदंते-छिद्रान्त-छेद का अन्त, दुसंतं-वस्त्र का अन्त, छायंते-छाया का अन्त, आयवंतं-आतपान्त-धूप का अन्तिम भाग ।
भावार्थ-२०२ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या लोक का अन्त (किनारा) अलोक के अन्त को स्पर्श करता है ? क्या अलोक का अन्त लोक के अन्त को स्पर्श करता है ?
२०२ उत्तर-हाँ, गौतम ! लोक का अन्त, अलोक के अन्त को और अलोक का अन्त, लोक के अन्त को स्पर्श करता है।
___ २०३ प्रश्न-हे भगवन् ! जो स्पर्श किया जा रहा है क्या वह स्पृष्ट हे ? या अस्पृष्ट है ?
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