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भगवती सूत्र - श. १ उ. ६ सूर्य के उदयास्त दृश्य की दूरी
१९९ उत्तर - हे गौतम! वह क्षेत्र सूर्य से स्पृष्ट होता हैं और यावत् उस क्षेत्र को छहों दिशाओं में प्रकाशित करता है, उद्योतित करता है, तपाता 'है और खूब तपाता है । यावत् नियमपूर्वक छहों दिशाओं में खूब तपाता है ।
२०० प्रश्न - हे भगवन् ! सूर्य स्पर्श करने के काल - समय से सूर्य के साथ सम्बन्ध रखने वाले जितने क्षेत्र को सब दिशाओं में सूर्य स्पर्श करता है, क्या 'वह क्षेत्र 'स्पृष्ट' कहा जा सकता है ?
२०० उत्तर - हाँ, गौतम ! सर्व यावत् 'वह स्पृष्ट है' ऐसा कहा जा सकता है ।
२०१ प्रश्न - हे भगवन् ! सूर्य स्पष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है ? या अस्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है ?
२०१ उत्तर - हे गौतम! सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है, यावत् नियमपूर्वक छहों दिशाओं में स्पर्श करता है ।
विवेचन - पांचवें उद्देशक के अन्त में आँखों से दिखाई देने वाले ज्योतिषी देवों के विमानावासों का वर्णन किया था। अब उन्हीं से सम्बन्धित बात को बतलाते हुए तथा इस शतक की प्रथम संग्रह गाथा में 'जावंते' यह पद आया है इसको बतलाते हुए छठे उद्देशक का प्रारम्भ किया गया है।
गौतम स्वामी ने प्रश्न किया है कि हे भगवन् ! उगता हुआ सूर्य जितनी दूर से आंखों से दिखाई देता है, क्या डूबता हुआ सूर्य भी उतनी ही दूर से आंखों से दिखाई देता है ? भगवान् ने फरमाया कि हाँ, गौतम ! उगता हुआ सूर्य जितनी दूर से आंखों से दिखाई देता है, डूबता हुआ सूर्य भी उतनी ही दूरी से आँखों से दिखाई देता है ।
सूर्य के १८४ मण्डल कहे गये है। कर्क की संक्रान्ति में सूर्य सर्वाभ्यन्तर ( सब से पीछे वाले) मण्डल में भ्रमण करता है । उस समय वह भरत क्षेत्र में रहने वालों को साधिक ४७२६३ योजन दूरी से दिखता है । मूलपाठ में 'चक्खुप्फासं' शब्द दिया गया है, जिसका सीधा शब्दार्थ है- 'चक्षु का स्पर्श होना' । किन्तु इसका अर्थ है - 'चक्षु द्वारा दिखाई देना' । चक्षु इन्द्रिय अप्राप्यकारी है। वह अपने विषय 'रूप' को छुए बिना ही दूर से देख लेती है। स्पर्श होने पर तो वह अपने में रहे हुए काजल को भी नहीं देख पाती, फिर
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