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________________ २६२ भगवती मूत्र-श. १ उ. ६ लोकान्त स्पर्शना आदि फुसइ ? २०२ उत्तर-हंता, गोयमा ! लोयंते अलोयंत फुसइ, अलोयंते वि लोयंतं फुसइ। २०३ प्रश्न-तं भंते ! किं पुढे फुसइ, अपुढे फुसइ ? - २०३ उत्तर-जाव-नियमा छदिसि फुसइ । २०४ प्रश्न-दीवंते भंते ! सागरंतं फुसइ, सागरते वि दीवंतं फुसइ ? २०४ उत्तर-हंता, जाव-नियमा छद्दिसिं फुसइ । . २०५ प्रश्न-एवं एएणं अभिलावेणं-उदयंते पोयतं फुसइ, छिद्दन्ते दूसतं, छायंते आयवंतं.....! २०५ उत्तर-जाव-नियमा छदिसि फुसइ । विशेष शब्दों के अर्थ-फूसइ-स्पर्श करता है, लोयंते लोकान्त, अलोयंतेअलोकान्त, पुढें-स्पृष्ट, दीवंते-द्वीपान्त, अभिलावेणं-अभिलाप से, उदयंते-उदकांत, जल का अन्तिम भाग, पोयंते-पोतान्त-जहाज का अन्तिम भाग, छिदंते-छिद्रान्त-छेद का अन्त, दुसंतं-वस्त्र का अन्त, छायंते-छाया का अन्त, आयवंतं-आतपान्त-धूप का अन्तिम भाग । भावार्थ-२०२ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या लोक का अन्त (किनारा) अलोक के अन्त को स्पर्श करता है ? क्या अलोक का अन्त लोक के अन्त को स्पर्श करता है ? २०२ उत्तर-हाँ, गौतम ! लोक का अन्त, अलोक के अन्त को और अलोक का अन्त, लोक के अन्त को स्पर्श करता है। ___ २०३ प्रश्न-हे भगवन् ! जो स्पर्श किया जा रहा है क्या वह स्पृष्ट हे ? या अस्पृष्ट है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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