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________________ भगवती सूत्र - श. १ उ. ६ लोकान्त स्पर्शना आदि २६१ औरों की तो बात ही क्या है ? चक्षु इन्द्रिय के सिवाय शेष चार इन्द्रियां प्राप्यकारी है । वे अपने ग्राह्य विषय को प्राप्त करके ही जानती हैं । हुआ सूर्य जितने लम्बे चौड़े ऊंचे और गहरे क्षेत्र को प्रकाशित करता है, उद्योतित करता है, तपाता है और खूब तपाता है, उतने ही क्षेत्र को डूबता हुआ सूर्य भी प्रकाशित आदि करता है । इस प्रश्नोत्तर में 'ओभासइ, उज्जोएइ, तवेइ और पभासेइ' ये चार क्रियापद आये हैं । जिनका अर्थ यह है- 'ओभासइ - अवभासयति' अर्थात्-थोड़ा प्रकाशित होता है । प्रातः काल में पहले सूर्य की थोड़ी सी ललाई नजर आती है, उस समय सूर्य का मण्डल दिखाई नहीं देता है। सूर्य के उस प्रकाश को 'अवभास' कहते हैं । उस समय स्थूलतर वस्तुएँ ही दिखाई देती हैं। सुबह और शाम के जिस प्रकाश में स्थूल ( बड़ी बड़ी ) वस्तुएँ ही दिखाई देती हैं, सूर्य के उस प्रकाश को 'उद्योत' कहते हैं। उस समय बड़ी बड़ी वस्तुओं का प्रकाशित होना उद्योतित होना कहलाता है । 'तवेइ' का अर्थ है - तपता है, शीत को दूर करता है, अथवा यह ताप ऐसा होता है जिससे चींटी आदि छोटे छोटे प्राणी भी स्पष्ट दिखाई देते हैं । 'पभासेइ - प्रभासयति' अर्थात् खूब तपता है, अत्यन्त ताप होने से शीत को विशेष रूप से दूर करता है तथा यह ताप ऐसा होता है जिससे छोटी से छोटी वस्तु भी दिखाई देती है । सूर्य जिस क्षेत्र को अवभासित करता है, उद्योतित करता है, तपाता है, खूब तपाता है, उस क्षेत्र को स्पर्श करके अवगाहन करके अवभासित आदि करता है । अनन्तरावगाढ़ को अवभासित आदि करता है, किन्तु परम्परावगाढ़ को नहीं । अणु, बादर, ऊपर, नीचे, तिरछा, आदि, मध्य और अन्त आदि सब क्षेत्र को अवभासित आदि करता है । वह स्वविषय में अवभासित होता है, परविषय में नहीं, क्रमपूर्वक अवभासित होता है, अक्रमपूर्वक नहीं । वह छहों दिशाओं को अवभासित आदि करता है। सूर्य जिस क्षेत्र को स्पर्श करने लगा, “चलमाणे चलिए' के सिद्धान्तानुसार 'स्पृष्टस्पर्श किया हुआ' ऐसा कहा जा सकता है । Jain Education International लोकान्त स्पर्शना आदि २०२ प्रश्न—लोयंते भंते!अलोयंतं फुसइ, अलोयंते वि लोयंतं For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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