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भगवती सूत्र - श. १ उ. ५ असुरकुमारों के स्थिति स्थान आदि
सहित जो हो उसे साकारोपयोग कहते हैं और सामान्य अंश को ग्रहण करने वाले उपयोग को अनाकारोपयोग कहते हैं । अर्थात् ज्ञानोपयोग को 'साकारोपयोग' कहते हैं और दर्शनोपयोग को 'अनाकारोपयोग' कहते हैं । इन दोनों उपयोगों में सत्ताईस भंग होते हैं ।
रत्नप्रभा पृथ्वी के सम्बन्ध में दस बातों की पृच्छा की गई है। रत्नप्रभा की तरह 'सातों नरकों के जीवों की पृच्छा है । सिर्फ लेश्या में अन्तर है- पहली और दूसरी नरक में कापोत लेश्या हैं। तीसरी बालुकाप्रभा के उपरितन नरकावासों में कापोत लेश्या है और - अधस्तन नरकावासों में नील लेश्या है । इसलिए तीसरी नरक में दो लेश्याएँ हैं। चौथी नरक में नील लेश्या है। पांचवी में नील और कृष्ण ये दो लेश्याएँ हैं । छठी नरक में कृष्ण लेश्या और सातवीं नरक में परम-कृष्ण लेश्या है ।
असुरकुमारों के स्थितिस्थान आदि
१९० प्रश्न - चउसडीए णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमाराणं केवइया टिड्डाणा पण्णत्ता ?
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१९० उत्तर - गोयमा ! असंखेज्जा टिड्डाणा पण्णत्ता । जहणिया ठिई जहा नेरइया तहा, नवरं पडिलोमा भंगा भाणियव्वा । सव्वे वि ताव होज्ज लोभोवउत्ता | अहवा लोभोवउत्ता य, मायोवउत्ते य, अहवा लोभोवउत्ता य, मायोवउत्ता य । एएणं गमेणं यव्वं जाव - थणियकुमाराणं, नवरं णाणत्तं जाणियव्वं ।
विशेष शब्दों के अर्थ - चउसट्ठीए - चौसठ, पडिलोमा - प्रतिलोम - उल्टा, जाणतंनानात्व- भिन्नपना ।
भावार्थ - १९० प्रश्न - हे भगवन् ! चौसठ लाख असुरकुमारावासों में के
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