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भगवती सूत्र-श. १ उ. ५ असुरकुमारों के स्थिति स्थान आदि
एक एक असुरकुमारावास में बसने वाले असुरकुमारों के कितने स्थिति स्थान कहे गये हैं ?
१९० उत्तर-हे गौतम ! उनके स्थिति स्थान असंख्यात कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं-जघन्य स्थिति, एक समय अधिक जघन्य स्थिति, इत्यादि वर्णन नारकियों के समान जानना चाहिए । विशेषता यह है कि इनमें जहां सत्ताईस भंग आते हैं वहां प्रतिलोम-उल्टे समझना चाहिए । वे इस प्रकार है-समस्त असुरकुमार लोभोपयुक्त होते हैं । अथवा बहुत से लोभोपयुक्त और एक मायोपयुक्त होता है । अथवा बहुत से लोभोपयुक्त और बहुत से मायोपयुक्त होते हैं। इत्यादि रूप से जानना चाहिए । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। विशेषता यह है कि संहनन संस्थान लेश्या आदि में भिन्नता जाननी चाहिए।
विवेचन-नरक गति के जीवों का वर्णन करने के पश्चात् देवगति का वर्णन किया : जाता है । भवनों में रहने वाले देव 'भवनपति' कहलाते हैं। उनके असुरकुमारादि दस भेद हैं । उनके स्थितिस्थान के असंख्य भेद हैं। उनमें क्रोधादि के सत्ताईस और अस्सी भंग पाये जाते हैं । जहाँ नारकियों में २७ भंग-क्रोध, मान, माया, लोभ इस क्रम से कहे गये हैं, वहाँ देवों में इससे उल्टे कहना चाहिए अर्थात् लोभ, माया, मान, क्रोध, इस रोति से कहना चाहिए । देवों में पाये जाने वाले सत्ताईस भंग इस प्रकार हैं।
असंयोगी १ भंग१. सभी लोभी.
तिक संयोगी ६ मंग
१. लोभी बहुत, मायी एक, २. लोभी बहुत, मायी बहुत, ३. लोभी बहुत, मानी एक, ४ लोभी बहुत, मानी बहुत, ५ लोभी बहुत, क्रोधी एक, ६ लोभी बहुत, क्रोधी बहुत।
त्रिक संयोगी १२ भंग१. लोभी बहुत, मायी एक, मानी एक, २. लोभी बहुत, मायी एक, मानी बहुत,
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