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भगवती सूत्र-श. 1 उ. ५ नैरयिकों की लेश्या दृष्टि आदि
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१८७ उत्तर-सत्तावीसं भंगा। एवं वइजोए, एवं कायजोए ।
१८८ प्रश्न-इमीसे णं जाव-नेरइया किं सागारोवउत्ता, अणा: गारोवउत्ता ?
१८८ उत्तर-गोयमा ! सागारोवउत्ता वि, अणागारोवउत्ता वि ।
१८९ प्रश्न-इमीसे णं जाव-सागारोवओगे वट्टमाणा किं कोहोवउत्ता ?
१८९ उत्तर-सत्तावीसं भंगा। एवं अणागारोवउत्ता वि सत्तावीसं भंगा । एवं सत्त वि पुढवीओ नेयवाओ, णाणत्तं लेसासु । गाहा:
काऊ य दोसु, तइयाए मीसिया, नीलिया चउत्थीए। पंचमीयाए मीसा, कण्हा तत्तो परमकण्हा ॥
विशेष शब्दों के अर्थ-लेस्साओ-लेश्या, काउलेस्सा-कापोत लेश्या, आभिणिबोहियणाणे-आभिनिबोधिक ज्ञान, वइजोए-वचन योग, सागारोवउत्ता-साकारोपयुक्त, अणागारोवउत्ता-अनाकारोपयुक्त, कण्हा-कृष्ण लेश्या, परमकण्हा-परमकृष्ण लेश्या ।
भावार्थ-१८० प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नैरयिकों में कितनी लेश्याएं कही गई हैं ?
१८० उत्तर-हे गौतम ! एक कापोत लेश्या कही गई है। .
१८१ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले कापोत लेश्या वाले नारको जीव क्या क्रोधोपयुक्त हैं ? मानोपयुक्त हैं ? मायोपयुक्त हैं ? या लोभोपयुक्त हैं ? |
१८१ उत्तर-हे गौतम ! इनमें सत्ताईस भंग कहना चाहिए। . १८२ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्थी में बसने वाले नारको क्या
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