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________________ भगवती सूत्र-श. 1 उ. ५ नैरयिकों की लेश्या दृष्टि आदि २४३ . १८७ उत्तर-सत्तावीसं भंगा। एवं वइजोए, एवं कायजोए । १८८ प्रश्न-इमीसे णं जाव-नेरइया किं सागारोवउत्ता, अणा: गारोवउत्ता ? १८८ उत्तर-गोयमा ! सागारोवउत्ता वि, अणागारोवउत्ता वि । १८९ प्रश्न-इमीसे णं जाव-सागारोवओगे वट्टमाणा किं कोहोवउत्ता ? १८९ उत्तर-सत्तावीसं भंगा। एवं अणागारोवउत्ता वि सत्तावीसं भंगा । एवं सत्त वि पुढवीओ नेयवाओ, णाणत्तं लेसासु । गाहा: काऊ य दोसु, तइयाए मीसिया, नीलिया चउत्थीए। पंचमीयाए मीसा, कण्हा तत्तो परमकण्हा ॥ विशेष शब्दों के अर्थ-लेस्साओ-लेश्या, काउलेस्सा-कापोत लेश्या, आभिणिबोहियणाणे-आभिनिबोधिक ज्ञान, वइजोए-वचन योग, सागारोवउत्ता-साकारोपयुक्त, अणागारोवउत्ता-अनाकारोपयुक्त, कण्हा-कृष्ण लेश्या, परमकण्हा-परमकृष्ण लेश्या । भावार्थ-१८० प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नैरयिकों में कितनी लेश्याएं कही गई हैं ? १८० उत्तर-हे गौतम ! एक कापोत लेश्या कही गई है। . १८१ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले कापोत लेश्या वाले नारको जीव क्या क्रोधोपयुक्त हैं ? मानोपयुक्त हैं ? मायोपयुक्त हैं ? या लोभोपयुक्त हैं ? | १८१ उत्तर-हे गौतम ! इनमें सत्ताईस भंग कहना चाहिए। . १८२ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्थी में बसने वाले नारको क्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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