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भगवती सूत्र-श. १ उ. ५ नैरयिकों की दृष्टि ज्ञान आदि
सम्यग्दृष्टि हैं ? मिथ्यादृष्टि हैं ? या सम्यग्मिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि) हैं ? . . .
१८२ उत्तर-हे गौतम ! तीनों प्रकार के हैं।
१८३ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले सम्यगदष्टि नारको जीव क्या क्रोधोपयुक्त हैं ? मानोपयुक्त हैं ? मायोपयुक्त हैं ? लोभोपयुक्त हैं ?
१८३ उत्तर-हे गौतम ! सत्ताईस भंग कहना चाहिए। इसी तरह मिथ्यादृष्टि में भी कहना चाहिए। सम्यगमिथ्यादृष्टि में अस्सी भंग कहना चाहिए। . १८४ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नारकी जीव क्या ज्ञानी है ? या अज्ञानी हैं ?
१८४ उत्तर-हे गौतम ! उनमें ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी। जो ज्ञानी हैं उनमें नियमपूर्वक तीन ज्ञान होते हैं और जो अज्ञानी हैं उनमें तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं।
१८५ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले और आभिनिबोधिक ज्ञान में वर्तने वाले नारकी जीव क्या क्रोधोपयुक्त हैं ? मानोपयुक्त है ? मायोपयुक्त है ? या लोभोपयुक्त है ?
१८५ उत्तर-हे गौतम ! यहाँ सत्ताईस भंग कहना चाहिए और इसी प्रकार तीन ज्ञान और तीन अज्ञान में कहना चाहिए।
१८६ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नारकी जीव क्या मनयोगी हैं ? वचनयोगी हैं ? या काययोगी हैं ?
१८६ उत्तर-हे गौतम ! वे प्रत्येक तीनों प्रकार के हैं अर्थात् सभी नारकी जीव मन, वचन और काया, इन तीनों योगों वाले हैं ?
१८७ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले और मन योग में वर्तने वाले नारकी जीव क्या क्रोधोपयुक्त हैं ? मानोपयुक्त हैं ?मायोपयुक्त हैं ? या लोभोपयुक्त हैं ?
१८७ उत्तर-हे गौतम ! सत्ताईस भंग कहना चाहिए और इसी प्रकार वचनयोगी और काययोगी में भी कहना चाहिये।
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