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________________ भगवती सूत्र - श. १ उ. ५ नारकों के उपयोग १८८ प्रश्न - - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले नारकी जीव क्या साकारोपयोग से युक्त ? या अनाकारोपयोग से युक्त हैं ? १८८ उत्तर - हे गौतम ! साकारोपयोग युक्त भी हैं और अनाकारोपयोग युक्त भी हैं । २४५ १८९ प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले और साकारोपयोग में बर्तने वाले नारकी जीव क्या क्रोधोपयुक्त हैं ? मानोपयुक्त हैं ? मायोपयुक्त हैं ? या लोभोपयुक्त हैं ? १८९ उत्तर - हे गौतम! इनमें सत्ताईस भंग कहना चाहिए। इसी प्रकार अनाकारोपयोग युक्त में भी कहना चाहिए । रत्नप्रभा में कहा उसी तरह से सातों पृथ्वियों के विषय में कहना चाहिए । श्याओं में विशेषता है। वह इस प्रकार है-पहली और दूसरी नरक में कापोत लेश्या है । तीसरी में मिश्र अर्थात् कापोत और नील, ये दो लेश्या हैं । चौथी में नील लेश्या है। पाँचवीं में मिश्र अर्थात् नील और कृष्ण, ये दो लेश्या हैं ? छठी में कृष्ण लेश्या है और सातवीं में परम कृष्ण लेश्या है । विवेचन - रत्नप्रभा के तीस लाख नरकावासों में के जीवों में सिर्फ एक कापोत लेश्या होती है। इनमें क्रोधादि के सत्ताईस भंग कहने चाहिए । इसके बाद दृष्टि द्वार का कथन किया गया है । वहाँ तीनों दृष्टि वाले जीव होते हैं । उनमें सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि में क्रोधादि के सत्ताईस भंग कहने चाहिए । मिश्रदृष्टि में अस्सी भंग होते हैं। इसका कारण यह है कि मिश्रदृष्टि जीव अल्प हैं और उनका सद्भाव भी काल की अपेक्षा अल्प है अर्थात् वे कभी मिलते हैं और कभी नहीं भी मिलते हैं । इसलिए मिश्रदृष्टि नारक में क्रोधादि के अस्सी भंग पाये जाते हैं । Jain Education International अब ज्ञान द्वार के विषय में कहा जाता है-जो जीव नरक में सम्यक्त्व सहित उत्पन्न होते हैं उन्हें जन्मकाल के प्रथम समय से लेकर भवप्रत्यय अवधिज्ञान होता है । अतः वे नियम पूर्वक तीन ज्ञान वाले ही होते हैं। जो मिथ्यादृष्टि जीव नरक में उत्पन्न होते हैं वे यहाँ से संज्ञी जीवों में से अथवा असंज्ञी जीवों में से गये हुए होते हैं । उनमें से जो जीव यहाँ से संज्ञी जीवों में से जाकर नरक में उत्पन्न होते हैं उनको जन्मकाल से 1 For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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