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भगवती सूत्र - श. १ उ. ५ असुरकुमारों के आवास
लाख, चौथी में दस लाख, पाँचवीं में तीन लाख, छठी में पाँच कम एक लाख और सातवीं पृथ्वी में सिर्फ पांच नरकावास कहे गये हैं ।
विवेचन — चौथे उद्देशक के अन्त में अर्हन्त का वर्णन किया था । अर्हन्त इसी पृथ्वी पर होते हैं अथवा पृथ्वी अर्थात् नरक से निकल कर मनुष्य थव पाकर अर्हन्त - सर्व होते हैं । अतः पृथ्वी का वर्णन किया जाता है तथा प्रथम शतक की संग्रह गाथा में 'पुढवी' - यह पद कहा गया है । इसलिए इस उद्देशक के प्रारम्भ में 'पृथ्वी' का वर्णन किया जाता है ।
गौतम स्वामी ने पूछा कि हे भगवन् । पृथ्वियाँ कितनी हैं ? भगवान् ने फरमाया कि - हे गौतम! पृथ्वियाँ सात हैं । यथा - रत्नप्रभा शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा और तमस्तमः प्रभा ।
रत्नप्रभा के तीन काण्ड हैं- रत्नकाण्ड, जलकाण्ड और पङ्ककाण्ड । रत्नकाण्ड में कावास की जगह को छोड़ कर शेष जगह में अनेक प्रकार के इन्द्रनीलादि रत्न होते. हैं, जिनकी प्रभा - कान्ति पड़ती रहती है। इस कारण से पहली पृथ्वी का नाम 'रत्नप्रभा' पड़ा है । इसी प्रकार शेष पृथ्वियों के नामों की भी उपपत्ति समझ लेना चाहिए । सातवीं पृथ्वी में घोर अन्धकार है, इसलिए नाम तमस्तमः प्रभा या महातमः प्रभा है ।
इसके पश्चात् गौतम स्वामी पूछते हैं कि हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने लाख नरकवास-नैरयिकों के रहने के स्थान हैं ? भगवान् ने फरमाया कि - हे गौतम! तीस लाख नरकवास हैं । इसी प्रकार दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह लाख, चौथी में दस लाख, पाँचवीं में तीन लाख, छठी में पाँच कम एक लाख और सातवीं में सिर्फ पाँच नरकवास हैं ।
सातों नरकों के सब मिला कर चौरासी लाख नरकावास होते हैं ।
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असुरकुमारों के आवास
१६६ प्रश्न - केवइया णं भंते ! असुरकुमारावास सयसहस्सा
पण्णत्ता ?
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१६६ उत्तर - एवं:
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