________________
२२४
भगवती सूत्र--श. १ उ. ५ असुरकुमारावास
चउसट्ठी असुराणं चउरासीई य होइ नागाणं, बावत्तीरं सुवण्णाणं वाउकुमाराण छण्णउई । दीव-दिसा-उदहीणं विज्जुकुमारिंद-थणियमग्गीणं,
छण्हं पि जुयलयाणं ावत्तरिमो सयसहस्सा। - भावार्थ-१६६ प्रश्न-हे भगवान् ! असुरकुमारों के कितने लाख आवास कहे गये हैं ?
१६६ उत्तर-हे गौतम ! इस प्रकार हैं-असुरकुमारों के चौंसठ लाख, नागकुमारों के चौरासी लाख, सुवर्णकुमारों के बहत्तर लाख, वायुकुमारों के छयानवें लाख आवास कहे गये हैं और द्वीपकुमार, दिक्कुमार (दिशाकुमार) उदधिकुमार-विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार और अग्निकुमार, इन छह युगलों के छहत्तर छहत्तर लाख आवास कहे गये हैं।
विवेचन-'रत्नप्रभा' आदि पृथ्वियों में प्रस्तर और अन्तर कहे गये हैं । नरयिक जीवों के रहने के स्थान को प्रस्तर कहते हैं और एक प्रस्तर से दूसरे प्रस्तर के बीच की जगह को अन्तर कहते हैं । रत्नप्रभा में तेरह प्रस्तर और बारह अन्तर हैं । बारह अन्तरों में ऊपर के दो अन्तरों को छोड़ कर शेष दस अन्तरों में क्रमशः दस प्रकार के भवनवासी देव रहते हैं । भवनवासी देव मेरु से दक्षिण में और उत्तर में रहते हैं । दक्षिण दिशा में और उत्तर दिशा में रहने वाले भवनवासी देवों के आवासों की संख्या इस प्रकार हैदक्षिण दिशा में
उत्तर दिशा में १ असुरकुमारों के ३४ लाख
३० लाख २ नागकुमारों के ४४ लाख
४० लाख ३ सुवर्णकुमारों के ३८ लाख
३४ लाख . ४ वायुकुमारों के ५० लाख
४६ लाख ५ द्वीपकुमारों के ४० लाख
३६ लाख . ६ दिशाकुमारों के ४० लाख
३६ लाख ७ उदधिकुमारों के ४० लाख
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org