________________
भगवती सूत्र-श. १ उ. ५ स्थिति-स्थान
२३१
कभी एक मायोपयुक्त । कभी एक लोभोपयुक्त । कभी बहुत क्रोधोपयुक्त । कभी बहुत मानोपयुक्त । कभी बहुत मायोपयुक्त । कभी बहुत लोभोपयुक्त होते हैं। .
. . ____अथवा एक क्रोधोपयुक्त और एक मानोपंयुक्त । अथवा एक क्रोधोपयुक्त और बहुत मानोपयुक्त । अथवा बहुत क्रोधोपयुक्त और एक मानोपयुक्त। अथवा बहुत क्रोधोपयुक्त और बहुत मानोपयुक्त । इत्यादि प्रकार से अस्सी भंग समझना चाहिए । इसी प्रकार यावत् संख्येय समयाधिक स्थिति वाले नारकियों के लिए समझना चाहिए । असंख्येय समयाधिक स्थिति वालों में तथा उसके योग्य उत्कृष्ट स्थिति वाले नरयिकों में सत्ताईस भंग कहना चाहिए।
विवेचन- गौतम स्वामी ने पूछा कि-हे भगवन् ! पहली रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नरकावास हैं, उनमें रहने वाले जीवों की स्थिति-स्थान कितने कितने हैं ?
. भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! एक एक नरकावास में रहने वाले जीवों की .स्थिति के स्थान भिन्न-भिन्न हैं। किसी की जघन्य स्थिति है, किसी की मध्यम और किसी कि उत्कृष्ट स्थिति है । इस पहली रत्नप्रभा पृथ्वी के पहले प्रतर में रहने वाले नारक जीवों की आयु कम से कम दस हजार वर्ष है और अधिक से अधिक नब्बे हजार वर्ष की है। कम से कम आयु 'जघन्य' कहलाती है और अधिक से अधिक आयु 'उत्कृष्ट' कहलाती है। जघन्य और उत्कृष्ट के बीच की आयु को 'मध्यम' कहते हैं। मध्यम आयु जघन्य और उत्कृष्ट के समान एक प्रकार की नहीं है । जघन्य आयु से एक समय की अधिक की आयु भी मध्यम कहलाती है, दो समय अधिक की आयु भी. मध्यम कहलाती है, इसी प्रकार संख्यात और असंख्यात समय अधिक की आयु भी मध्यम ही कहलाती है। इस प्रकार मध्यम आयु के अनेक विकल्प हैं । अतः कोई नारकी दस हजार वर्ष की आयु वाला, कोई एक समय अधिक दस हजार वर्ष की आयु वाला, कोई दो समय अधिक दस हजार वर्ष की आयु वाला, इसी प्रकार कोई असंख्यात समय अधिक दस हजार वर्ष की आयु वाला है. कोई उत्कृष्ट आयु वाला है । इसलिए नारकी जीवों के स्थितिस्थान असंख्य हैं।
- काल का वह सूक्ष्मतम अंश, जो निरंश है, जिसका दूसरा अंश संभव नहीं है, वह 'समय' कहलता है । जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति है, उससे एक एक समय अधिक करते हुए उत्कृष्ट नब्बे हजार वर्ष की स्थिति तक असंख्य विभाग (स्थिति-स्थान) हो
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org