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भगवती सूत्र--श. १ उ. ४ छद्मस्थादि की मुक्ति
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उत्पन्न ज्ञान-दर्शनधारी, अरिहन्त, जिन और केवली होकर फिर सिद्ध होते हैं यावत् सब दुःखों का नाश करेंगे?
१६२ उत्तर-हाँ, गौतम ! बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे।
१६३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वे उत्पन्न ज्ञान-दर्शनधारी, अरिहन्त, जिन केवली 'अलमस्तु' अर्थात् पूर्ण हैं, ऐसा कहना चाहिए?
- १६३ उत्तर-हां, गौतम ! वे उत्पन्न ज्ञान-दर्शनधारी, अरिहन्त, जिन, . केवली पूर्ण हैं-ऐसा कहना चाहिए।
हे भगवन् ! ऐसा ही है । हे भगवन् ! ऐसा ही है ।
विवेचन-पहले सूत्र में परमाणु आदि जड़ पदार्थ का और जीव का अस्तित्व प्रकट किया था। यहाँ यह बतलाया गया है कि- जीव अनादि है, तो वह कभी भवबन्ध से छूटता है, या नहीं?
पहले छद्मस्थ मनुष्य के लिए प्रश्न किया है । जिन्हें केवलज्ञान नहीं हुआ है वे सब छग्रस्थ कहलाते हैं-यहां ऐसा नहीं समझना चाहिए, किन्तु यहां जिसमें अवधि ज्ञान नहीं-ऐसा छद्मस्थ लिया गया है, क्योंकि आगे अवधिज्ञानी के लिए अलग प्रश्न किया गया है । यदि यहाँ 'छद्मस्थ' पद से अवधिज्ञानी भी ले लिया जाय, तो अगला प्रश्न निरर्थक हो जायगा। ___ 'केवल' शब्द का अर्थ इस प्रकार है
___ केवलमेगं सुद्धं वा, सगलमसाहारणं अणंतं च । अर्थात्-केवल = अकेला, शुद्ध, सम्पूर्ण, असाधारण और अनन्त, इन अर्थों में 'केवल' शब्द का प्रयोग होता है , - संयम-पृथ्वीकाय, अप्काय, आदि छह काय जीवों की सम्यक् प्रकार से यतना करना 'संयम' कहलाता है। यहाँ 'केवल संयम' कहा है । इसका अर्थ है कि-दूसरे की सहायता न रखने वाला संयम, अथवा शुद्ध संयम, अथवा परिपूर्ण संयम, अथवा असाधारण संयम ।
- संयम के बाद 'केवल संवर' शब्द है । इन्द्रियों को और कषायों को रोकना 'संवर' कहलाता है । 'केवल' शब्द का अर्थ वही है जो पहले बताया जा चुका है।
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