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भगवती सूत्र-श. १ उ. ३ कांक्षा-मोहनीय कम
परपाषण्ड प्रशंसा मोहनीय आदि कांक्षामोहनीय के अन्तर्गत समझ लेना चाहिए।
"क्रियते इति कर्म' जो कर्ता द्वारा किया जाय उसे कर्म कहते हैं । जो कर्ता द्वारा नहीं किया जाता वह कर्म नहीं हो सकता। यदि विना किये ही कर्म होने लगे तो जगत् कि सम्पूर्ण व्यवस्था उथलपुथल हो जाय । अतः गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि-कांक्षा मोहनीय कर्म जीव द्वारा किया हुआ है। इसके बाद गौतम स्वामी ने पछा कि जीव ने कांक्षामोहनीय कर्म किया है तो क्या-१ देश से देश को किया? २ देश से सर्व को किया ? ३ सर्व से देश को किया ? या ४ सर्व से सर्व को किया ?
कार्य चार प्रकार से होता है। जैसे कोई मनुष्य किसी वस्तु को ढकना चाहे, तो वह उसे चार प्रकार से ढक सकता है । १ अपने शरीर के हाथ आदि किसी एक अवयव से वस्तु के एक भाग को ढके । २ शरीर के किसी एक भाग से सम्पूर्ण वस्तु को ढके । ३ अपने सारे शरीर से वस्तु के किसी एक भाग को ढके । ४ अपने सारे शरीर से सम्पूर्ण वस्तु को ढके । ..
यहाँ 'देश' का अर्थ है-आत्मा का एक देश और एक समय में ग्रहण किये जाने वाले कर्म का एक देश । यदि आत्मा के एक देश से कर्म का एक देश किया, तो यह 'देश से देश किया' कहलाता है। यदि आत्मा के एक देश से सर्व कर्म किया, तो 'देश से सर्व किया' कहलाता है। सम्पूर्ण आत्मा से कर्म का एक देश किया गया, तो 'सर्व से देश किया' कहलाता है । सम्पूर्ण आत्मा से सम्पूर्ण कर्म किया, तो 'सर्व से सर्व किया' कहलाता है ।
गौतम स्वामी ने इसी अभिप्राय से कांक्षामोहनीय कर्म के विषय में प्रश्न किया है। भगवान् ने उत्तर में फरमाया है कि हे गौतम ! कांक्षामोहनीय कर्म ‘सर्व से सर्वकृत' है। अर्थात् समस्त आत्मप्रदेशों से समस्त कर्म किया हुआ है । पूर्वोक्त चौभंगी में से यहां चौथा भंग ग्रहण किया गया है।
- केवल चौथा भंग ही ग्रहण करने का कारण है-जीव का स्वभाव । जीव अपने स्वभाव से समस्त आत्म-प्रदेशों के द्वारा एक क्षेत्रावगाढ कर्म पुद्गलों को, जो एक समय में बंधने योग्य हो, बाँधता है। अतएव एक काल में किया जाने वाला कांक्षामोहनीय कर्म, जीव 'सर्व से सर्व' को करता है । इसलिए तीन भंगों का निषेध करके यहां सिर्फ चौथा भंग स्वीकार किया गया है। ' अथवा-जिन आकाश प्रदेशों में जीव का अवगाहन हो रहा है-जिस क्षेत्र में आत्मा के प्रदेश विद्यमान हैं, उसी आकाश प्रदेश में रहने वाले कर्मपुद्गल एक क्षेत्रावगाढ कहलाते
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