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भगवती सूत्र-श. १ उ. ४ अपक्रमण
पंडियवीरियत्ताए।
१५२ प्रश्न-से भंते ! किं आयाए अवकमइ, अणायाए अवकमइ ?
१५२ उत्तर-गोयमा ! आयाए अवकमइ, णो अणायाए अवकमइ।
१५३ प्रश्न-मोहणिजं कम्म एमाणे से कहमेयं भंते ! एवं ?
१५३ उत्तर-गोयमा ! पुल्विं से एयं एवं रोयइ, इयाणि से एयं एवं नो रोयइ; एवं खलु एयं एवं ।
विशेष शब्दों के अर्थ-अवक्कमेज्जा-अपक्रमण करता है, उदिण्णेणं-उदीर्ण = उदय में आया हुआ, उवसंतेण-उपशान्त, आयाए-आत्मा से, अणायाए-अनात्मा से ।
भावार्थ-१५० प्रश्न-हे भगवन् ! उपार्जन किया हुआ मोहनीय कर्म जब उदय में आया हो, तो क्या जीव अपक्रमण करता है अर्थात् उत्तम गुणस्थानक से हीन गुणस्थानक में जाता है ?
१५० उत्तर-हाँ, गौतम ! अपक्रमण करता है।
१५१ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव बालवीर्य से अपक्रमण करता है ? या पण्डितवीर्य से अथवा बालपण्डितवीर्य से ?
१५१ उत्तर-बालवीर्य से अपक्रमण होता है और कदाचित् बालपण्डित • वीर्य से भी अपक्रमण होता है, किन्तु पण्डित वीर्य से नहीं होता। जैसे 'उदय में
आये हए' पद के साथ दो आलापक कहे हैं, उसी प्रकार 'उपशान्त' पद के साथ भी दो आलापक कहना चाहिए । विशेषता यह है कि यहाँ पण्डितवीर्य से उपस्थान होता है और बालपण्डितवीर्य से अपक्रमण होता है।
.१५२ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या अपक्रमण आत्मा से होता है, या अनात्मा से ? . १५२ उत्तर-हे गौतम ! अपक्रमण आत्मा से होता है, अनात्मा से नहीं।
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