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भगवती सूत्र-श. १ उ. ४ उपस्थान
१४७ उत्तर-हां, गौतम ! उपस्थान करता है।
१४८ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव वीर्य से उपस्थान करता है, या . अवीर्य से ?
१४८ उत्तर-हे गौतम ! जीव वीर्य से उपस्थान करता है, अवीर्य से नहीं करता है।
१४९ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वीर्य से उपस्थान करता है, तो क्या बालवीर्य से करता है, या पण्डित वीर्य से अथवा बालपण्डित वीर्य से ?
. १४९ उत्तर-हे गौतम ! बालवीर्य से ही उपस्थान करता है, किन्तु पण्डितवीर्य और बाल पण्डित वीर्य से उपस्थान नहीं करता है।
विवेचन-कर्मप्रकृतियों के विषय में सामान्य रूप से विचार करने के पश्चात् मोहनीय कर्म के विषय में विचार किया गया है। गौतम स्वामी ने पूछा है कि-हे भगवन् ! जीव ने जो मोहनीय कर्म किया है, वह जब उदय में आया हो, तब क्या जीव परलोक साधन के लिए क्रिया करता है ? उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि-हाँ, गौतम करता है । यहाँसाधारण मोहनीय कर्म का कथन नहीं है, किन्तु मिथ्यात्वमोहनीय का कथन है।
मोहनीय कर्म का उदय होने पर भी जीव परलोक की क्रिया करता है और वह वीर्य से करता है, अवीर्य से नहीं । वह वीर्य तीन प्रकार का है-१ बालवीर्य, २ पंडितवीर्य और ३ बाल-पण्डित वीर्य । जिस जीव में अर्थ का सम्यक् बोध न हो और सद्बोध के फलस्वरूप विरति न हो (क्योंकि सम्यग्ज्ञान का फल विरति-चारित्र है) अर्थात् जो मिथ्यादप्टि हो उसे 'बाल' कहते हैं । बाल जीव का वीर्य (पुरुषार्थ) बालवीर्य कहलाता है। जो जीव सर्व पापों का त्यागी होता है, उसे 'पण्डित' कहते हैं । जिसने शुष्क ज्ञान पढ़ा और पापों का त्याग नहीं किया, उसका ज्ञान निष्फल है । कहा भी है
तज्ज्ञानमेव न भवति, यस्मिन्नुदिते विभाति राग गणः ।
तमसः कुतोऽस्ति शक्तिदिनकरकिरणाग्रतः स्थातुम् ॥ अर्थात् ज्ञान के सद्भाव में भी राग द्वेष पाये जावें, वह ज्ञान नहीं हो सकता। ज्ञान का फल, राग द्वेष को टालना है । जिस ज्ञान से यह फल प्राप्त न हो सका, वह ज्ञान ज्ञान नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जाज्वल्यमान सूर्य की किरणों के सामने ठहरने की शक्ति अन्धकार में कहां है ? अर्थात् सूर्य का प्रकाश फैलने पर अन्धकार नष्ट हो जाता है । अतः
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